पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगी दुनिया, ये लाइन आपको भले ही सुनने में अच्छी लग रही हो लेकिन इसका असल मतलब आपका भी सिर चकरा देगा, इससे पहले हम आपको इसका मतलब समझाए, हमारे पास आप के लिए कुछ सवाल है, क्या आपको मालूम है कि भारत को मार्स (Mars) पर पहुंचाने वाले (Indian Space Research Organisation, ISRO) में आईआईटी(IIT) और एनआईटी(NIT) से पासआउट केवल दो फीसदी इंजीनियर्स ही काम कर रहे हैं? Aur क्या आपने कभी आपने सोचा है की भारत की आजादी के लिए सबसे बड़े बलिदानी माने जाने वाले महात्मा गांधी ने अपनी वकालत की योग्यता दिखाने के लिए विदेश ही क्यों चुना??
आप को भी ये बखूभी मालूम होगा की भारत में कैसे गवर्नमेंट कॉलेज में हर साल एडमिशन के लिए कतारे लगती है, पर एंट्रेंस एग्जाम में ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगाने के बाद भी कुछ गिने चुने लोगो को ही दाखिला मिलता है, और विद्यार्थियों की पढ़ाई पूरी होने के बाद फायदा दूसरे देशों को मिलता है?? भारत के मेन इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स जिन्हे असल मायनों में भारत की टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट को फ्रेम करना चाहिए, वे सेंट्रल गवर्नमेंट से फंड के नाम पर अपने देश से पैसे और स्किल्ड ह्यूमन कैपिटल का आउटफ्लो करा रहे है, ये भले ही जानभूझ कर न किया जाता हो पर असल में यही घटना भारत की हर साल एजुकेशन इंस्टीट्यूशन में लगी करोड़ों की इन्वेस्टमेंट को पानी में डुबोने का काम करती है।
इसका सबसे बड़ा कारण इंडियन एजुकेशन पॉलिसी में सख्ती न बरतना है, क्युकी अगर हम ईस्ट या साउथ एशियन कंट्रीज़ के और देखे तो वहा की गवर्नमेंट यूनिवर्सिटीज से पासआउट स्टूडेंट्स अगर किसी दूसरे देश में रहना या काम करना ते चाहते हैं तो उन्हें पहले अपने देश की एजुकेशन पॉलिसी के अनुसार कुछ सालों के लिए या तो अपनी कंट्री की आर्मी या फिर गवर्नमेंट सेक्टर में अपनी सर्विसेस कंट्रीब्यूट करनी रहती है। जिसमें जापान, चीन अमेरिका, फ्रांस जैसे देश शामिल है। जबकि भारत में ऐसा कोई भी नियम नहीं है।
एक सर्वे के मुताबिक भारत के मैक्सिमम सक्सेसफुल इंडियन ग्रेजुएट्स फॉरेन मल्टीनेशनल कंपनी में जाकर काम करते है जिसमे सबसे ऊपर नाम अमेरिका का आता है यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में अधिकांश सफल भारतीय IIT ग्रेजुएटेड हैं, जिसके पूरे भारत में सात प्रमुख परिसर हैं। भारतीय IIT वर्ल्ड क्लास केमिकल, इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियर प्रोवाइड करते हैं। पहला इन्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मई 1950 में खड़गपुर में स्थापित किया गया था।
एक दशक के भीतर, बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ती तकनीकी मांगों को पूरा करने के लिए बॉम्बे, मद्रास, कानपुर और दिल्ली में चार और आईआईटी स्थापित किए गए और 1953 में ही, लगभग पच्चीस से तीस हजार IITians अमेरिका में बस गए। अमेरिका में कुछ प्रसिद्ध आईआईटीयन रहते हैं जिनमें विनोद खोसला, Co Founder, Sun Microsystems, सुंदर पिचाई, CEO, Google, राजन गुप्ता, Former Managing Director, McKinsey, सुभाष खोट, Computer Scientist aur Rolf Nevanlinna Prize Winner, राजीव मोटवानी, गोडेल के विजेता (Gödel’s winning bounty) के नाम शामिल है।
हालांकि इस सच को भी नकारा नहीं जा सकता की रिजर्वेशन पॉलिसी और आईआईटी और एनआईटी की एक सीट पर लाखो स्टूडेंट्स की किस्मत टिकी होती है, जो की बढ़ते कंपीटिशन में स्टूडेंट्स को विदेशी पैकेज की तरफ आकर्षित करता है। भारत के शीर्ष दिमागों का इतने बड़े पैमाने पर ट्रेवल, भारत के अपने एजुकेशन सिस्टम इन्वेस्टमेंट पर एक गहरी चोट करता है,
विदेशी mein हमारे स्किल्ड लोगो का बस log न केवल पनपते हैं बल्कि टॉप पोस्ट भी ग्रेब करते हैं भारत के एक विकसित देश बनने के सपने को और पीछे कर देता है। अपने देश में अवसर होते हुए भी विदेश में रहने और वहां खाने कमाने की अधिक संभावनाएं दिखाई देने का सबसे बड़ा कारण हमारे देश की सरकारों का विदेशियों को यहां आकर भारतीयों को मानसिक गुलाम बनाए रखने की सुविधाएं प्रदान करना है।
ISRO में आईआईटी(IIT) और एनआईटी(NIT) से पासआउट केवल दो फीसदी इंजीनियर्स ही काम कर रहे हैं इस जानकारी का खुलासा आरटीआई के तहत 2014 में आई एक रिपोर्ट में हुआ था। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक ISRO में दो फीसदी ही ग्रेजुएट आईआईटी या एनआईटी से पढ़कर आए है।
और अगर बात भारत के राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की करे तो आप इसे इतिहास की गवाही ही समझिए की भारत के बड़े बड़े लोगो ने भी कभी नाम और काम की लालच में आकर विदेश को अपनी कर्मभूमि चुना और जरा सोचिए की अगर गांधी जी, किसी भी परिस्थिति के कारण हो, भारत न लौटते तो क्या कभी राष्ट्रपिता बन सकते थे?
खैर ये तो एक पुराना एग्जाम्पल है, तो चलिए आपको भारत के एक और well known IT सेक्टर के बड़े नाम के उदाहरण से समझाते है इंफोसिस(Infosys) के फाउंडर एमआर नारायण मूर्ति(MR. Narayan Murthy) भारत की तत्कालीन स्थिति से निराश थे या नहीं, लेकिन ये सच था कि आईआईटीयन मूर्ति ने भी विकसित यूरोप की हरी-भरी गलियों के लिए भारत छोड़ दिया था। यह अलग बात थी कि यूरोप की एक अपमानजनक घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी थी और वे भारत वापस लौट आए और अपने छह करीबी दोस्तों के साथ भारत की दूसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर फर्म इंफोसिस की स्थापना की।
अगर नजर डाले इस जानकारी से जुड़े कुछ इंपोर्टेंट stats की तो
- “International Migration 2020 Highlights” के अनुसार सन 2000 से 2020 के बीच भारत ने करीब 1 करोड़ लोगो का पलायन रिकॉर्ड किया है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के लगभग 35 लाख लोग संयुक्त अरब एमिरेट में रहते हैं, 27 लाख अमेरिका में और 25 लाख सऊदी अरब में रहते हैं।
- 1996-2015 के बीच 10 वीं और 12 वीं की बोर्ड परीक्षाओं में आधे से अधिक – सबसे प्रतिभाशाली भारतीय दिमाग – विदेश चले गए और अभी भी वहीं एमोलॉयड हैं।
- बजट 2019-20 में, भारत ने शिक्षा के लिए (6.43 lakh crore) रुपये का पब्लिक फंड्स का एलोकेशन किया, जिसका एक हिस्सा स्टूडेंट्स को सब्सिडी देने में चला गया।
इस प्रकार भारतीय शिक्षा प्रणाली में निवेश इंडिरेक्टली विदेशी राष्ट्रों की प्रगति में योगदान देता है। इन सभी रिपोर्ट्स और डाटा को देखा जाए तो जितनी स्कीम भारत अपने विद्यार्थियों के लिए निकालता है उनकी पढ़ाई में मदद करने के लिए चाहे वह एजुकेशन लोन के जरिए हो या फिर स्कॉलरशिप के जरिए हो, इतनी फैसिलिटी कोई और देश अपने स्टूडेंट्स को प्रोवाइड नहीं करता है मगर इंडियन एजुकेशन सिस्टम का सबसे बड़ा ड्रॉबैक हम देखें तो वह यह है कि यहा सरकारी कॉलेज जितने ज्यादा सफल माने जाते हैं सरकारी स्कूल उतने ही ज्यादा पिछड़े हुए है
इसीलिए अगर किसी भी स्टूडेंट की प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन गवर्नमेंट स्कूल से हो तो वो खुद भारत के ही किसी काम की नही रहती, पर जहा भारत का एजुकेशन सेक्टर में रोल सबसे प्रमुख है वहा भारतीय छात्र ही अपने देश को अंगूठा दिखा kar हवाई जहाज की यात्रा पर निकल लेते है।
तो आपकी इस मामले पर क्या राय है?? हमने आपके सामने दोनो क्राइटेरिया को बेहद साफ तरीके से पेश किया है, की कहा भारत की गलती है, और कहा पर भारत के साथ गलत किया जा रहा है जय हिंद।।