Truth Behind the Farmer Protests | किसान आंदोलन के पीछे का सच

Truth Behind the Farmer Protests

क्या हैं किसान आंदोलन ? क्यों हज़ारो किसान तबाही मचाने पर उतर आये हैं ? इनकी ऐसी कौनसी मांगें हैं जो सरकार मानने से मना कर रही हैं ? इन मांगो को आखिर सरकार कबूल क्यों नहीं कर रही ? खेती बाड़ी के मुद्दे में खालिस्तान कैसे और क्यों बीच में घसीटा जा रहा हैं ? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा हैं ?आखिर कब शांत होगा ये गर्मागर्मी का माहौल ?अगर सरकार ने किसानो की मांगें मान ली तो देश पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा ? क्या महंगाई बढ़ जायेगी ? ये MSP क्या हैं ? 

2021  के बाद एक बार फिर किसानो का गुस्सा फूट पड़ा हैं , भारी तादाद में पंजाब के किसान दिल्ली की तरफ अपनी ट्रेक्टर ट्राली लेकर दिल्ली पर चढ़ाई करने के लिए निकल चुके हैं , ये देख पुलिस प्रशसन भी काफी एक्टिव नज़र आ रहा हैं , पंजाब से दिल्ली की ओर आने वाले रास्तो को सील कर दिया गया हैं , किसी भी तरह की रैली या जुलूस निकालने, सड़को और रास्तो में रुकावट पैदा करने पर भी सख्ती बरत रही हैं ,दिल्ली पुलिस के आदेश के अनुसार ट्रैक्टर ट्रॉलियों के राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं को पार करने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया हैं। दिल्ली-रोहतक और दिल्ली-बहादुरगढ़ रास्तो पर पुलिस की तैनाती कर दी गयी हैं, दिल्ली पुलिस ने 5000 से ज़्यादा सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया हैं, वहीँ इन आंदोलन कार्यो को रोकने के लिए बड़े बड़े वाहन Crans भी लगाई गयी हैं ताकि ये लोग दिल्ली में ना आ सके। पुलिस इन किसानो को रोकने के लिए हर तरह की कोशिश कर रही हैं जहां एक तरफ पुलिस फाॅर्स, क्रेन्स ,वाहन किसानो के लिए रुकावट बने हुए हैं वहीँ दूसरी तरफ पुलिस कर्मी आँसू बम फेककर उनका रास्ता रोकते नज़र आ रहे हैं। 

खास से आम लोगो को एक ही बात का डर सता रहा है की जैसे पहले साल 2021 में किसान आंदोलन की वजह से दिल्ली के आस पास के हालात काफी सख्त और परेशानी खड़े करने वाले होते नज़र आये थे कहीं इस बार भी दिल्ली नयी मुसीबतो में ना घिर जाए , जिस तरह लास्ट टाइम किसानो के आंदोलन की वजह से लोगो को खाना मिलना, पानी मिलना बच्चो का स्कूल कॉलेज जाना सब मुश्किल हो गया था, कहीं इस बार भी लोग इन्ही परेशानियों का शिकार न बन जाए। जो भी हो लेकिन किसान इस बार पहले से भी ज़्यादा गुस्से और अपने फैसले पर डटे हुए देखे जा रहे हैं और इनका साथ कांग्रेस पार्टी भी दे रही हैं। ऐसे में लोगो के  मन में यही सवाल चल रहा हैं की आखिर सरकार इनकी मांग मान कर इस मसले को खत्म क्यों नहीं कर देती हैं लेकिन इन्हे मानना सरकार के लिए नामुमकिन जैसा हैं ? तो आखिर कौनसी कश्मकश में फंसी हैं सरकार क्या हैं मांगे?

साल 2021  में BJP सरकार ने अपने तीन कृषि बिलों को वापस लेकर किसान आंदोलन को ठंडा कर दिया था , सरकार का ये फैसला सुनते ही किसान पंजाब वापस चले गए और दिल्ली के हालात पहले की तरह बेहतर हो गए, भले ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया था लेकिन अब भी इनकी एक मांग पूरी नहीं हुईं थी और वो थी की सरकार MSP को लेकर कोई कानून बनाये ?सरकार ने भी इन्हे दिलासा देते हुए कहा था की हम एक कमेटी बनाकर इस पर सोच विचार करेंगे ,लेकिन साल 2021 से अब तक इस पर कोई भी कानून नहीं बन पाया और अब चूं की लोक सभा इलेक्शन सर पर खड़े हैं इसलिए किसान सरकार से अपनी इस मांग को वक्त रहते पूरा करने पर ज़ोर दे रहे हैं। 

अगर आपको MSP का नहीं पता तो इसका मतलब हैं मिनिमम सपोर्ट प्राइस , यानी ये वो दाम होते है जिनके अंडर में सरकार किसानो से खाद पदार्थ खरीदती हैं , अब चाहे जिस दाम में सरकार खरीद रही हैं बाजार में उसका उच्च दाम हो या फिर निम्न, इससे किसान को कोई मतलब नहीं होता। MSP की ये स्कीम 1965 में शुरू की गयी थी ,क्योंकि उस दौर में देश में खाने की बहुत कमी थी, इसलिए सरकार हरित क्रान्ति के ज़रिये ज़्यादा से ज़्यादा फसलें लगाकर देश को भरपूर खाना देना चाहती थी, इसी दौरान MSP लागू की गयी थी ताकि किसानो को सरकार आसानी से फसलें उगाने और उन्हें देने के लिए मना सके। सरकार ने MSP के ज़रिये यकीन दिलाया गया की किसानों को फसलों के बदले एक फिक्स रेट मिलेगी। बस तभी से MSP के तहत किसान सरकार को अपनी फसलें बेचते हैं। 

लेकिन अब किसान MSP को लेकर कुछ कानून बनाने के लिए ज़ोर दे रहे हैं ,इसकी वजह हैं की MSP में सरकार ने कहा था की उन्हें 50  फीसदी रिटर्न मिल जाएगा लेकिन कई ऐसे किसान हैं जिन्हे लागत का 50 % profit नहीं मिला ,बल्कि इन्हे कम कीमत पर फसल बेचनी पड़ी अब क्योंकि ये एक policy हैं ना की कानून इसलिए किसान अपने हक के लिए कोई बड़ा कदम भी नहीं उठा सकते हैं, जबकि सरकार का कहना हैं की वो ऐसे ही MSP को जारी रखेगी और इन्हे प्रॉफिट का भी यकीन दिलाया जा रहा हैं ?लेकिन किसान इसे कानून के रूप में चाहते हैं। 

लोगो का कहना हैं सरकार किसानो की मांगो को मंज़ूरी दे दे, लेकिन इसमें सरकार और देश दोनों के लिए खतरा बढ़ता नज़र आ रहा हैं जी हां इन मांगो को पूरा करने के लिए सरकार को करीब 10 लाख करोड़ रूपए की ज़रूरत पड़ रही हैं , ये मांग और बजट दोनों ही बहुत बड़ा हैं क्योंकि आप खुद सोचिये की जब इस साल के अंतरिम बजट मे इंफ्रास्ट्रक्चर का बजट 11  लाख करोड़ रखा गया हैं तो सरकार सिर्फ किसानो के लिए कैसे 10 लाख करोड़ का खर्च तय कर सकती हैं। 

सिर्फ इतना ही नहीं किसानो की और भी बहुत सी मांगें हैं जैसे किसानो का कहना हैं की सरकार की तरफ से हर महिने हर किसान को 10000 रूपए पेंशन दी जाए, साल में 200 दिनों के लिए 700 रूपए की दिहाड़ी के हिसाब से मनरेगा में रोज़गार ,मुफ्त बिजली , डीज़ल सब्सिडी भी दी जाए और अगर सरकार इन सब मांगो को मान लेती हैं तो फिर सरकार को करीब 36  लाख करोड़ रूपए का बजट चाहिए, इतनी बड़ी रकम को सिर्फ किसानो की ज़रूरत और उनकी मांगो पर खर्च करना सरकार के बजट से भी बाहर हैं। 

अगर एक बार को मान भी लिया जाए की चलो सरकार इन मांगों को मंज़ूरी दे देती हैं तो फिर सरकार इतने पैसे कैसे और कहां से लाएगी? या तो सरकार को देश के INFRASTRUCTURE के बजट से कटौती करनी होगी या फिर देश की सुरक्षा व्यवस्था पर कम खर्च करना होगा, वहीँ किसानो की मांग के मुताबिक़ अगर सरकार ने सभी फसलों पर MSP का कानून बना दिया तो सरकार को करीब 40 लाख करोड़ का बजट रखना होगा। 

इतने बड़े बजट को बनाना सरकार के लिए नामुमकिन हैं , सोचिये अगर सरकार ने इनकी मांग को मान लिया तो देश में काफी नुक्सान देखने को मिलेगा क्योंकि जो पैसा देश की तरक्की में उसकी रक्षा में लगने वाला था उसका कुछ हिस्सा किसानो के पास चला जायेगा , जब सरकार का बजट तंग होगा तो चीज़ें महंगी होने लगेंगी , टैक्स में बढ़ोत्तरी हो सकती हैं ,जो प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं उनमें रुकावट पैदा हो सकती हैं और इन सबका असर देश और देश के लोगो पर ही पड़ेगा इसलिए सरकार इन मांगो को मानने में आना कानि कर रही हैं। 

सबसे बड़ी परेशानी है की MSP को सरकार प्रावधान में जोड़ने में काफी मुश्किल महसूस कर रही हैं , क्योंकि सबसे बड़ी समस्या ये हैं की इस कानून का पालन कैसे होगा ?क्योंकि जो MSP हैं वो फेयर एवरेज क्वालिटी के लिए हैं यानी अगर फसल की अच्छी कीमत हुई तो ही उसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा , अब ऐसे में सरकार ने नियम बना दिया लेकिन फसल की कीमत अच्छी नहीं हुई तो उसका क्या होगा ? क्या फिर भी सरकार को उसे सही कीमत पर खरीदना होगा ?ऐसे में इस कानून पर खरा उतरना मुश्किल होगा ,वहीँ अगर सरकार सभी फसलों को MSP  में जोड़ लेती हैं तो फिर सरकार का बजट ज़्यादा हो जाएगा। 

इन्ही को देखते हुए सरकार ने फैसला किया हैं की बजट को मेंटेन रखने के लिए आने वाले वक्त में किसानो से गेहू और धान की खरीद कम कर देगी, अब जब इनकी फसले कम बिकेंगी तो किसान इनका क्या करेंगे यहीं डर किसानो को सता रहा हैं की अगर सरकार कम फसल खरीदेंगी तो फिर इन्हे निजी कम्पनियो को ये फसलें बेचनी होंगी और जो निजी कंपनियां होंगी वो MSP की कीमत से कम पैसे में इनसे खरीदेंगी क्योंकि यहां पैसो की, अपनी मेहनत की खरीद की ज़रूरत किसानो को हैं और ये बात निजी कम्पनिया अच्छे से जान जायेगी इसलिए किसानो को कम कीमत पर ही उन्हें अपनी फसलें बेचनी पड़ेगी, ऐसे में किसानो को कितना घाटा होगा ये आप अच्छे से जान सकते हैं। यही वजह है कि किसान अब MSP  और अपनी सभी मांगो को लेकर अपना फ्यूचर सिक्योर करना चाहते हैं ताकि अगर BJP पार्टी हटती भी हैं तो वादे के मुताबिक़ वो अपने वादे को निभा सके और दूसरी सरकार आने के बाद भी इन्हे मुनाफ़ा मिलता रहे। 

ऐसा नहीं हैं की सरकार किसानो को कुछ मुनाफा नहीं देती हैं बल्कि किसानो को तो सरकार ने बहुत सी फैसिलिटीज दे रखी हैं , मशहूर अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने बताया हैं की हर साल पंजाब के किसानो को सरकार की तरफ से 8000  करोड़ की बिजली सब्सिडी दी जाती हैं और FERTILIZER  सब्सिडी के तौर पर किसानो को 665  मिलियन डॉलर्स दिए जाते हैं ,ऐसे में आप देख सकते हैं की सरकार ने किसानो के लिए क्या कुछ नहीं किया हैं , लेकिन फिर भी किसान अपने फ्यूचर और अपनी इनकम में कटौती के डर से सड़को पर सरकार के खिलाफ नारे लगाने जुलूस निकालने पर उतर आये हैं। इतना ही नहीं,, ना सिर्फ किसान सरकार को बुरा भला कह रहे हैं बल्कि इसी आग में से एक चिंगारी खालिस्तान के लिए उठती नज़र आ रही हैं , जी हां इन आंदोलनकारियों में कुछ गिने चुने लोग वो भी शामिल हैं जो इन मांगो की आड़ में सरकार से खालिस्तान बनाने की मांग कर रहे हैं और देश का बंटवारा करना चाहते हैं। 

ये देख कुछ लोगो का कहना हैं की ये मांगें किसी दूसरी आग किसी दुसरे मुद्दे को जन्म देने के लिए तो नहीं की जा रही है , कही इस प्रदर्शन के पीछे कोई और वजह तो नहीं हैं, हालांकि अभी तो खालिस्तान की मांग सिर्फ कुछ ही लोगो को ज़ुबान पर हैं लेकिन कब ये सबकी जुबां पर आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।।फिलहाल तो किसान MSP  पर ही ज़ोर दे रहे हैं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा की किसान अपना विरोध जारी रख सकते हैं। यह तब तक ही हो सकता है जब तक कि किसी की जिंदगी या संपत्ति को इससे खतरा न पहुंचता हो। इसके अलावा कोर्ट ने इस मामले पर अनुरोध करते हुए कहा की ये मामला दोनों पक्ष आपस में बैठकर सुलझाए और इस मसले का हल निकालने की कोशिश करे। क्योंकि जब तक दोनों पक्ष एक दुसरे की बात नहीं समझेंगे एक दुसरे को अपनी बात नहीं समझायेंगे तब तक इस मसले का कोई हल नहीं निकल सकता हैं। 

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