Bhopal Gas Tragedy | क्या थी भोपाल गैस त्रासिदी?

Bhopal Gas Tragedy

                क्या थी भोपाल गैस त्रासिदी? क्यों कम्पनी करती थी मिथाइल आइसोसाइनेट जैसी जहरीली गैस का इस्तेमाल?आज कैसे हैं भोपाल गैस त्रासदी से पीड़ित लोग?भोपाल। में आज लोगो पर गैस का क्या असर देखने को मिलता है?

                भारत के राज्य मध्य प्रदेश की राजधानी है – भोपाल । इसी भोपाल में मानव इतिहास की एक सबसे भयंकर घटना घटी थी – 3 दिसंबर 1984 को। इसी घटना की वजह से हर साल 2 दिसम्बर को National Pollution Control Day मनाया जाता है। ताकि लोगों को एयर पॉल्यूशन के बारे में जागरूक किया जा सके।

                 वैसे ये हादसा 2-3 दिसंबर की रात को हुआ था। जब भोपाल में स्थित एक pesticide plant से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। भोपाल के यूनियन कार्बाइड के कारखाने से 40 टन से अधिक मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक हो गई थी। इस गैस का यूज कीटनाशक पदार्थों को बनाने में किया जाता है। 

                दरअसल उस समय जहरीली गैस हवा में मिल गई थी और हवा के बहाव के साथ शहर में काफ़ी दूर तक फैलती चली गई। जिससे तकरीबन 3,800 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और कई हजार लोगों में तरह-तरह की मेडिकल प्रॉब्लम्स बढ़ने लगीं , लोगों को न सिर्फ अपंगता की शिकायत हुई बल्कि अंधेपन की भी बीमारी हो गई  और बहुत से लोगों की तो समय से पहले ही मौत हो गई।

                जब उस रात गैस लीक हुई तो सबसे पहले लोग ये बात ही नहीं समझ पा रहे थे कि आख़िर उनके साथ हो क्या रहा है। कुछ लोगों की आंखों में जलन हो रही थी तो कुछ लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी। गैस लीक की वजह से जिन लोगों के फेफड़ों में बहुत ज्यादा गैस पहुँच गई थीं उन्हे अगली सुबह भी नसीब नही हुई और वो उसी समय मर गए।

                मीडिया रिपर्ट्स के मुताब गैस रिसाव का कारण था – फैक्टरी के टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल methyl isosiate आइसोसाइनेट गैस के साथ पानी का मिलना – जिसके चलते दोनो के बीच केमिकल रिएक्शन हुई और टैंक में बहुत ज्यादा प्रेशर बन गया । इस दबाव की वज़ह से टैंक खुल गया और गैस चारों तरफ फैल गई। इस रिसाव से सबसे ज्यादा जनहानि प्लांट के पास बनी झुग्गी-झौंपड़ी में रहने वाले लोगो को हुई ,क्योंकि भोपाल मध्य प्रदेश की राजधानी है तो इस तरह की बस्ती में रहने वाले लोग वो लोग थे जो रोजी-रोटी की तलाश में दूर-दराज के इलाकों से यहाँ आकर बसे थे। लेकिन इस गैस के रिसाव के चलते इन लोगो की सोते में ही मौत हो गई ।

                मिथाइल आइसोसाइनेट – ये गैस इतनी खतरनाक थी कि सिर्फ़ तीन मिनट मेंके अंदर ही लोगो को मौत की नींद सुला रही थी ऐसे ही ये गैस हवा में मिलकर आगे बढ़ती गई और लोगों की जान लेती गई। कारखाने में मौजूद अलार्म सिस्टम ने घंटों तक काम ही नहीं किया । हालांकि इससे पहले भी जब कभी कोई परेशानि होती थी तो ये सिस्टम काम करता था। लोगों को चेतावनी दे देता था। लेकिन उस दिन ये बेअसर रहा।

                वहीं गैस से प्रभावित बड़ी संख्‍या में लोग इलाज के लिए आंखों और सांस की परेशानी की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टरों को भी पता नहीं था कि आख़िर इस तरह की परेशानी में कैसे इलाज किया जाए। वहीं धीरे धीरे इलाज के लिए आने वाले लोगों की संख्या भी इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि लोगों को अस्पतालों में भर्ती करने तक की जगह नहीं बची, बहुत से लोगों को दिखना बन्द हो गया था और बहुत से लोगों का सर ज़हरीली गैस की वजह से लगातार चकरा रहा था। 

                वहीं गैस की वजह से सांस लेने में भी तकलीफ की समस्या हर किसी को हो रही थी। कहा जाता है कि रिसाव के बाद अगले दो दिन में तकरीबन 50 हजार लोगों का इलाज किया गया। शुरू में तो डॉक्टरों को भी ठीक तरह से पता नहीं था कि आखिर कैसे इन परेशानियों से निजात पाई जाए क्योंकि उस समय शहर में ऐसे डॉक्टर ही नहीं थे, जिन्हें मिक गैस से पीड़ित लोगों के इलाज का कोई एक्सप्रिएंस  हो।

                सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस गैस त्रासदी के कुछ घण्टों में ही तकरीबन 3 हजार लोग मारे गए थे। वहीं दूसरे सोर्स का मानना हैं कि मरने वालों की संख्या इससे तीन गुना ज्यादा थी। बल्कि कुछ लोगों ने तो 15 हजार से भी ज्यादा लोगों के मरने का दावा किया है। दावे भले ही एक दूसरे से मेल न खाते हों लेकिन ये सच है कि इस घटना के बाद मौतों का सिलसिला बरसों तक ऐसे ही चलता रहा। यही नहीं अब जब चार दशक होने को आ रहे हैं तो ये सिलसिला अभी तक जारी है।

                लेकिन क्या हमने उस हादसे से सबक लिया । ऐसी ही बहुत सी छोटी-छोटी घटनाओं के आँकड़े बताते है कि शायद सबक नहीं लिया । इतनी बड़ी घटना के बाद भी इसी तरह के दूसरे इंडस्ट्रियल हादसे होते रहते हैं। भारत में मई 2020 से जून 2021 के बीच इंडस्ट्रियल हादसों में 231 मजदूरों की मौत हुई थी। आन्ध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम के एलपी प्लान्ट से जहरीली गैस के रिसाव से एक दर्जन मौतों से लेकर थर्मल पावर प्लान्ट विस्फोट के चलते 20 मौतें और विरुधनगर पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 21 लोगों की जानें  चली गई थीं। समय समय पर इस तरह के हादसे होते ही रहते है ।

                हालाँकि इस हादसे को हुए 4 दशक बीतने वाले हैं। लेकिन इस हादसे के असर से आज भी लोगों में हैल्थ ईश्यूज़ पाए जाते हैं। आज भी बच्चे विकलांग और बीमरियों से लड़ रहे हैं। और इस असर के बारे में हादसे के 3 साल बाद आई आईसीएमआर की पहली रिपोर्ट में आगाह कर दिया गया था। लेकिन ये कोई नहीं जानता था कि इसका असर इतने लम्बे अर्से तक होगा। 

                बात सिर्फ़ भविष्य में पैदा होने वाले विकलांग और बीमारी से ग्रसित बच्चों की ही नहीं है बल्कि रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि इस कैस की वजह से गर्भवती महिलाओं में उस दौरान 24.2 प्रतिशत महिलाओं का गर्भपात हो गया था। और जिन बच्चों का जन्म हुआ उनमें से 60 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे ज्यादा दिन तक जिन्दा नहीं रह पाए। वहीं जो बच्चे बच गए थे उनमें से 14.3 प्रतिशत बच्चे शारीरिक तौर पर सही पैदा नहीं हुए। ये असर उन बच्चों पर ज्यादा हुआ जो गैस रिसाव के समय गर्भ में तीन से नौ माह तक की अवस्था में थे। इसके अलावा जिन बच्चों की उम्र हादसे के वक्त 5 साल तक की थी उनमें उम्र बढ़ने के साथ सांस से जुड़ी समस्याएं भी देखने को मिलीं। 

                इस हादसे से पीड़ित लोग आज भी इस महामारी से जूझ रहे हैं लेकिन इस हादसे के दोषियों का क्या हुआ । बता दें वारेन एंडरसन – इस हादसे का मुख्य आरोपी लेकिन ये व्यक्ति आज इस दुनिया में नहीं है, न ही उसके दूसरे हिस्सेदार और न ही उस दौर के उनके कोई दूसरे मददगार। न तो गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदारों को सजा ही मिली और न ही पीड़ितों को राहत और ना ही इन लोगो को इंसाफ हो मिला , ‘भोपाल’ को लेकर सियासत बदस्तूर जारी है।

                 अब इस हादसे पर शायद यही किया जा सकता है कि इस हादसे के पीड़ितों को बेहतर इलाज और जिन लोगो को  मुआवजा नही मिला है लोगों को उनका हक मिले , क्योंकि इतिहास के इस सबसे भयानक industrial accident से जुड़ी कम्पनी ने जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था लेकिन मामले में                 Supreme Court की दखलअंदाज़ी के बाद कम्पनी ने भारत सरकार के साथ एक समझौता किया और नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार की। मुआवजे में 470 मिलियन डॉलर का भुगतान किया जो कि हादसे की वजह से लोगों पर पड़ने वाले असर और हादसे की वजह से हुई जनहानि के मुकाबले कम था। इसके अलावा इसका कोई और दूसरा रास्ता नही है।

                चलिए अब इस प्लांट के बारे में भी थोड़ा जान लें जिसमें ये भयानक हादसा हुआ था। साल 1969 में यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के नाम से भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली थी और 10 साल बाद साल 1979 में भोपाल में एक प्रॉडक्शन प्लांट लगाया था। फिर इसी प्लांट में सेविन नाम का कीटनाशक तैयार किया जाने लगा। यही सेविन असल में कारबेरिल नाम के केमिकल का ब्रैंड नाम था। 

                उस समय जहाँ दूसरी कम्पनियाँ कारबेरिल को बनाने के लिए कुछ और इस्तेमाल करती थीं वहीं यूसीआईएल ने मिथाइल आइसो साइनेट का इस्तेमाल किया गया ये एक जहरीली गैस थी। लेकिन इसके बावजूद इसका इस्तेमाल किया गया क्योंकि इसके इस्तेमाल से खर्च काफी कम होता था । बता दें भोपाल गैस जैसी बड़ी त्रासदी से पहले भी इसी प्लांट में कई घटनाएँ हो चुकी थीं। 

                1981 में फॉसजीन गैस के रिसाव के चलते एक वर्कर की मौत हो गई थी। फिर जनवरी 1982 में फॉसजीन के रिसाव से ही 24 वर्कर्स की हालत खराब हुई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया । इसके बाद फिर से फरवरी 1982 में रिसाव हुआ जिसमें एमआईसी का रिसाव हुआ था। तब 18 वर्कर्स प्रभावित हुए थे। फिर अगस्त 1982 में एक केमिकल इंजिनियर लिक्विड एमआईसी के संपर्क में आने से 30 फीसदी तक जल गया था।

                उसी साल फिर से अक्टूबर में एमआईसी का रिसाव हुआ जिसे रोकने के लिए एक व्यक्ति बुरी तरह जल गया। उसके बाद साल 1983 और 1984 के दौरान कई बार फॉसजीन,phosgene क्लोरीन clorine, मोनोमेथलमीन mono methylamine, कार्बन टेट्राक्लोराइड carbon tetrachloride और एमआईसी mic का रिसाव हुआ। लेकिन फिर साल 1984 की 2 और 3 दिसंबर की रात के दौरान ये हादसा हो गया।

                घटना का मुख्य आरोपी फैक्ट्री के संचालक वॉरन एंडरसन wander enderson को बनाया गया । घटना के बाद ही वो अमेरिका भाग गया था। उसे भारत लाकर सजा देने की मांग की गई लेकिन भारत सरकार एंडरसन को अमेरिका से लाने में सफल नहीं हुई और 29 सितंबर, 2014 को उसकी मौत हो गई।

                जिस भोपाल की आबादी आज 25 लाख से ज्यादा है वहाँ इस गैस हादसे की बरसी पर अब मातम के लिए जुटने वालों की संख्या भी कुल सौ रह गई है। यानी घटना से सबक लेने की बात तो दूर अब इस हादसे का गम भी धुंधला होता जा रहा है।

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