Why India is becoming slave of English | भारत में अंग्रेजी भाषा की गुलामी

Why India is becoming slave of English

               भले ही हमारे देश भारत को आज़ाद हुए 75 साल हो गए है लेकिन सायद आज भी हम पूरी तरह से आजाद नहीं हुए है क्यूँ कि आज भी हमारे भारत मे वेस्टर्न कल्चर को फॉलो किया जाता है इसी के साथ बहुत सी ऐसी अंग्रेजी चीज़े है जो भारत के देशवासियो द्वारा फॉलो किया जाता है . यहाँ तक आज भारत मे अंग्रेजी भाषा को इतना सर पर चढ़ा लिया गया है जिससे भारत कि अपनी खुद कि पहचान कही खो सी गयी है . अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल कर के हम पूरी दुनिया को यही बता रहे कि हम आज भी अंग्रेज़ों के ही ग़ुलाम है . भारत मे तो कई ऐसी जगहन है जहा पर तो अंग्रेजी भाषा को ही कंपल्सरी कर दिया गया है जो हमारे देश को बहुत हानि पंहुचा रहा है . बहुत से लोग इस बात को हलके मे ले रहे है लेकिन ये बहुत ही गंभीर बात है कि कैसे हम अंग्रेजी भाषा के ज़रिये आज भी अंग्रेज़ों के ग़ुलाम है 

               क्या आप जानते है कि चाइना जो आज पूरी दुनिया मे एक पावरफुल कंट्री के रूप मे सभी कंट्रीज के सामने बराबर कि टक्कर कर रहा है वो भारत देश कि आजादी के 2 साल बाद यानि 1949 मे आज़ाद हुआ था लेकिन फिर भी पिछले 72 से 73 सालो मे उसने अपने आप को एक सुपर पावर के रूप मे पूरी दुनिया के सामने अपने आप को  खड़ा किया है क्यूँ कि जब उसे आजादी मिली तो सबसे पहले उसने अपनी मात्र भाषा को ही तवज्जो दिया . वही अगर हम जापान देश को देखे तो वो भी कई सालो तक अलग अलग देशो का ग़ुलाम रहा है .

इसके बाद 1945 मे जब जापान के हीरोशिमा और नागासकी पर अमेरिका ने नुक्लेअर बम गिरा दिया था तब जापान पूरी तरह से ख़तम हो चूका था लेकिन फिर भी जापान इतने काम समय मे इतनी तेज़ी से आगे बढ़ा है कि आज बहुत से छोटे बड़े देश उसके सहारे पर चल रहे . वहा पे उनके विद्वानों से पूछा जाता है कि उन्होंने इतनी जल्दी ग्रोथ कैसे करी तो उनका कहना था कि जापान ने अपनी मात्र भाषा को ही सबसे ऊपर रखा और सिर्फ उसी को इम्पोर्टेंस दी . इसीलिए जापान इतनी तेजी से ग्रो कर पाया है . 

 

               और सिर्फ जापान ही नहीं बल्कि कई ऐसे छोटे छोटे देश है जिनकी आबादी भारत के जिले से भी काम है लेकिन फिर भी वो अपनी मात्र भाषा के साथ पूरी दुनिया मे अपना नाम बनाये है . इन देशो मे फिनलैंड , डेनमार्क स्वेदें और लगभग 24 ऐसे देश है जिनकी आबादी मात्र 25 से 30 लाख ही है लेकिन ये अपनी मात्र भाषा को ले कर चल रहे . बता दे कि फिनलैंड एक ऐसा देश है जो फ्रांस , इंग्लैंड , पोर्टअगल से बहुत ज्यादा दूर नहीं है लेकिन फिर भी अपनी मात्र भाषा पर टिका हुआ है

               अब बात करें अपने देश भारत कि तो कई मायनो मे भारत पूरी दुनिया मे सबसे पहले नंबर पे आता है जैसे भारत सबसे ज्यादा डॉक्टर्स वाला , सबसे ज्यादा इंजीनियर वाला , सबसे ज्यादा नेचुरल रिसोर्सस वाला देश है लेकिन अपनी मात्र भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने के मामले मे भारत सबसे पीछे है . एक वक़्त था जब संस्कृत हमारी राष्ट्र भाषा हुआ करती थी और तभी भारत भी सोने कि चिड़िया कहलाता था . लगभग सातवीं आठवीं शताब्दी तक भारत मे संस्कृत राष्ट्र भाषा रही और तभी तक भारत सोने कि चिड़िया कहलाया . इतिहास उठा कर देखा जाये तो जब से संस्कृत भाषा ख़तम हुयी है तभी से हमारे देश पर अटैक्स शुरू हुए है .

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कई ऐसे देश के क्रन्तिकारी रहे है जिन्होंने यही कहा है कि जब तक हमारी मात्र भाषा राष्ट्र भाषा नहीं बन जाती तब तक भारत कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता . उन्ही मे से एक थे महात्मा गाँधी जिन्होंने ये कहा था कि अगर देश कि आजादी के बाद अगर सांसद मे अंग्रेजी भाषा का उपयोग होगा तो इससे बड़ा अपमान कुछ भी नहीं हो सकता है . उन्होंने कहा था कि उन्हें ना सत्ता चाहिए ना सिंहासन चाहिए उन्हें बस एक दिन के लिए देश का शासक बना दे तो वो भारत मे हिंदी भाषा को उसकी राष्ट्र भाषा बना देंगे . इसके साथ ही वो पूरे देश मे शराब बड़ी भी कर देंगे और गौ हत्या पर प्रबंध लगा देंगे .

लेकिन महात्मा गाँधी का ये सपना मात्र सपना बन कर ही रह गया . इसके अलावा जब उनके परम शिष्यों के हाथ मे सत्ता आयी तब उनका कहना महात्मा गाँधी से एक दम उल्टा था . उन्होंने कहा कि अंग्रेजी भाषा के बिना भारत तरक्की नहीं कर सकता और अंग्रेजी ही वो भाषा है जो पूरे विश्व मे सबसे प्रतिष्ठित भाषा है .

               अंग्रेजी भाषा कि आज तक कि ग़ुलामी के पीछे एक बहुत बड़ी साज़िश और बहुत बड़ा षड़यंत्र रचा गया था . हुआ ये कि जब हमारे देश का संविधान लिखा जा रहा था तो उसमे 343 no. पर एक अनुच्छेद लिखा गया जिसमे ये लिखा था कि संविधान लागु होने के 15 साल बाद तक देश मे अंग्रेजी भाषा ही यूनियन का काम करेंगी . 15 sal बाद ही अंग्रेजी को हटाने कि बात होंगी . इसके बाद इसी अनुच्छेद के दूसरे और तीसरे पारा मे लिखा गया कि अगर देश के किसी भी 1 राज्य ने अगर अंग्रेजी को हटाने से मना कर दिया तो अंग्रेजी भाषा को नहीं हटाया जा सकता . उसके बाद अनुच्छेद no.. 348 मे ये लिख दिया गया कि भले ही देश मे हिंदी भाषा बोलने और पढ़ने के लिए इस्तेमाल हो लेकिन हाई कोर्ट , सुप्रीम कोर्ट और सांसद मे तो इंग्लिश का उसे ही होगा . तो कुछ इस तरह के षड़यंत्रो से हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने कि रेस से एक दम बाहर निकल फेका गया .

संविधान लागु होने के बाद कई बार समितियां बनायीं गयी और उसमे हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने के तर्क को रखा गया लेकिन हर बार कोशिश नाकाम होती गयी और समितियों ने अलग अलग बहाने दे कर अपने पल्ले झाड लिए . अब जब 15 साल भी बीत गए और उसके बाद हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने कि बात रखी गयी तो दक्षिण भारत मे दंगे शुरू हो गए और ये दंगे जान बुझ कर उन नेताओं ने करवाये थे जो ये चाहते थे कि अंग्रेजी भाषा कभी भी भारत से ना हटे. इन नेताओं कि अंग्रेजी भाषा के बारे मे 4 मत है पहला ये कि अंग्रेजी दुनिया कि सबसे अच्छी भाषा है. 

               दूसरा ये कि अंग्रेजी विश्व भाषा है. आप जानकर हैरान हो जायेंगे कि पूरी दुनिया के सिर्फ 11 परसेंट देश ही अंग्रेजी भाषा मे अपना काम करते है इसके अलावा बात करें आबादी के तौर पर तो दुनिया के केवल 4 परसेंट लोग ही ऐसे है जो अंग्रेजी padhte , लिखते और समझते है. तो अब आप ही बताइये कि आखिर कैसे इंग्लिश एक विश्व भाषा हुयी. 

               तीसरा तर्क ये था कि अंग्रेजी साइंस और टेक्नोलॉजी कि भाषा है. बता दे कि जब पता लगाया गया कि सबसे ज्यादा विज्ञानं कि किताबें कौन से भाषा मे सबसे ज्यादा लिखी गयी है तो रुस्सियन भाषा  का नाम सबसे ऊपर आया क्यूँ कि रूस ही एक मात्र ऐसा देश है जहा साइंस और टेक्नोलॉजी कि सबसे ज्यादा डिस्कावेरीज हुयी. तो यहाँ भी सवाल उठता है कि अंग्रेजी साइंस कि भाषा कैसे हो सकती है. 

               बात करें अगर चौथे तर्क कि तो वो ये था कि अंग्रेजी एक समृद्धशाली भाषा है. भाषा विद्वानो का मानना है कि कोई भी भाषा समृद्धि अपने no.. ऑफ़ वर्ड्स से होती है . इसके अलावा बता दे कि अंग्रेजी भाषा का जन्मदिन पांचवी शताब्दी मे यानि सबसे बाद मे हुआ था. और बाकि कि भाषाएँ अंग्रेजी से पुरानी है. तो सोचने वाली बात है जिस भाषा का जन्म  सबसे बाद मे हुआ तो उसके वर्ड्स भी सबसे काम होने चाहिए तो अंग्रेजी समृद्ध भाषा कैसे हुयी.

               तो इतनी बाते अंग्रेजी भाषा के बारे मे कही गयी जिससे आज तक भारत मे अंग्रेजी भाषा अपनी ढऊस जमाये हुए है और हम सब आज भी उसके ग़ुलाम बने है और यही वजह है कि आज भी भारत डेवलपिंग कंट्री के अंदर ही आता है.

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