Why Sikhs Migrate to Canada | क्यों पंजाबी भाग रहे कनाडा?

Why Sikhs Migrate to Canada

              चाहे मजाक में या असल काम के लिए आपने ये तो जरूर ही नोटिस किया होगा की आम इंसान जब विदेश जाने की सोचता है तब वो यूएसए, यूके और ऑस्ट्रेलिया, जैसे देशों के बारे में सोचता है, पर जब बात किसी भी पंजाबी और सिक्ख की बात आती है, जिनका सपना और जुनून सिर्फ कनाडा जाने का होता है।

और आपको ये जानकर भी हैरानी होगी की कनाडा के लोकतंत्र में भी अब सिक्खों की भारी संख्या निकल कर आई जिससे ये अनुमान लगाया जा रहा की कुछ सालो में शायद सिक्ख कम्युनिटी कनाडा की सरकार को चलती नजर आएगी। 

              ऐसे ही बहुत से फैक्ट जानेंगे आज के इस वीडियो में हम बताएंगे, की क्यो, और कैसे सिक्ख लोग भारत को छोड़कर बस जाते है कनाडा में।

पहली बार सिख कनाडा कब और कैसे पहुंचे?

              1897 में महारानी विक्टोरिया ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को डायमंड जुबली सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए लंदन आमंत्रित किया था. तब घुड़सवार सैनिकों का एक दल भारत की महारानी के साथ ब्रिटिश कोलंबिया के रास्ते में था. इन्हीं सैनिकों में से एक थे रिसालेदार मेजर केसर सिंह. रिसालेदार कनाडा में शिफ़्ट होने वाले पहले सिख थे.

              केसर सिंह के साथ कुछ और सैनिकों ने कनाडा में रहने का फ़ैसला किया था. इन्होंने ब्रिटिश कोलंबिया को अपना घर बनाया. बाक़ी के सैनिक भारत लौटे तो उनके पास एक कहानी थी. उन्होंने भारत लौटने के बाद बताया कि ब्रिटिश सरकार उन्हें बसाना चाहती है. अब मामला पसंद का था. भारत से सिखों के कनाडा जाने का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ था. तब कुछ ही सालों में ब्रिटिश कोलंबिया 5000 भारतीय पहुंच गए, जिनमें से 90 फ़ीसदी सिख थे.

              हालांकि सिखों का कनाडा में बसना और बढ़ना इतना आसान नहीं रहा है. इनका आना और नौकरियों में जाना कनाडा के गोरों को रास नहीं आया. भारतीयों को लेकर विरोध शुरू हो गया था.  यहां तक कि कनाडा में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे विलियम मैकेंज़ी ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा था, ”हिन्दुओं को इस देश की जलवायु रास नहीं आ रही है.”

              1907 तक आते-आते भारतीयों के ख़िलाफ़ नस्ली हमले शुरू हो गए. इसके कुछ साल बाद ही भारत से प्रवासियों के आने पर प्रतिबंध लगाने के लिए क़ानून बनाया गया. पहला नियम यह बनाया गया कि कनाडा आते वक़्त भारतीयों के पास 200 डॉलर होना चाहिए. हालांकि यूरोपियनों को लिए यह राशि महज 25 डॉलर ही थी. लेकिन तब तक भारतीय वहां बस गए थे. इनमें से ज़्यादातर सिख थे. ये तमाम मुश्किलों के बावजूद अपने सपनों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. इन्होंने अपनी मेहनत और लगन से कनाडा में ख़ुद को साबित किया. इन्होंने मजबूत सामुदायिक संस्कृति को बनाया. कई गुरुद्वारे भी बनाए.

सिखों को कनाडा से जबरन भारत भी भेजा गया

              सिखों, हिन्दुओं और मुसलमानों से भरा एक पोत कोमागाटा मारू 1914 में कोलकाता के बज घाट पर पहुंचा था. इनमें से कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई थी. भारतीयों से भरे इस जहाज को कनाडा में नहीं घुसने दिया गया था. जहाज में सवार भारतीयों को लेकर दो महीने तक गतिरोध बना रहा था. इसके लिए प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 2016 में हाउस ऑफ कॉमन्स में माफ़ी मांगी थी.

              1960 के दशक में कनाडा में लिबरल पार्टी की सरकार बनी तो यह सिखों के लिए भी ऐतिहासिक साबित हुआ. कनाडा की संघीय सरकार ने प्रवासी नियमों में बदलाव किया और विविधता को स्वीकार करने के लिए दरवाज़े खोल दिए. इसका असर यह हुआ कि भारतीय मूल के लोगों की आबादी में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई

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              भारत के कई इलाक़ों से लोगों ने कनाडा आना शुरू कर दिया. यहां तक कि आज भी भारतीयों का कनाडा जाना बंद नहीं हुआ है आज की तरीख़ में भारतीय-कनाडाई के हाथों में संघीय पार्टी एनडीपी की कमान है. कनाडा में पंजाबी तीसरी सबसे लोकप्रिय भाषा है. कनाडा की कुल आबादी में 1.3 फ़ीसदी लोग पंजाबी समझते और बोलते हैं.

कनाडा में सिखों का प्रभाव

              दुनिया भर में ‘सिख राष्ट्रवादी’ पंजाब में ख़ालिस्तान नाम से एक स्वतंत्र देश के लिए कैंपेन चला रहे हैं. कनाडा में क़रीब पांच लाख सिख हैं. कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन भी सिख ही हैं. हरजीत सज्जन के पिता वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजेशन के सदस्य थे. 2015 में जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि उन्होंने जितने सिखों को अपनी कैबिनेट में जगह दी है उतनी जगह भारत की कैबिनेट में भी नहीं है. कनाडा में भारतवंशियों के प्रभाव का अंदाज़ा इस बात से भी लगा सकते हैं कि वहां के हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए भारतीय मूल के 19 लोगों को चुना गया है. इनमें से 17 ट्रूडो की लिबरल पार्टी से हैं.

              कहा जा रहा है कि सिख अलगाववादियों से सहानुभूति के कारण ही भारत ने ट्रूडो की यात्रा को लेकर उदासीनता दिखाई है. हालांकि भारत ने इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज किया है. बीजेपी नेता शेषाद्री चारी ने बीबीसी से कहा कि कनाडा की सरकार ने साफ़ कर दिया है कि उनकी सरकार ख़ालिस्तानियों के ख़िलाफ़ है. 

आज की तारीख़ में कनाडा की आबादी धर्म और नस्ल के आधार पर काफ़ी विविध है. जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 22.3 फ़ीसदी हो गए थे. वहीं 1981 में अल्पसंख्यक कनाडा की कुल आबादी में महज 4.7 फ़ीसदी थे. इस रिपोर्ट के अनुसार 2036 तक कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 33 फ़ीसदी हो जाएंगे.

              ‘वॉशिगंटन पोस्ट’ से कॉन्फ़्रेंस बोर्ड ऑफ कनाडा के सीनियर रिसर्च मैनेजर करीम ईल-असल ने कहा था, ”किसी भी प्रवासी के लिए कनाडा सबसे बेहतर देश है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह मुल्क प्रवासियों को भी अवसर की सीढ़ी प्रदान करता है और लोग इससे कामयाबी की ऊंचाई हासिल करते हैं.”

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