Why didn’t Muslim religion spread in China? चीन में मुस्लिम धर्म क्यों नही फैला ?

Why didnt Muslim religion spread in China

             भारत में मुस्लिमो से पक्षपात को लेकर लंबी बहस चली है। अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर चर्चाएं होती रहीं यहां तक कि टेलीविजन पर ही पुरस्कार लौटाए गए। लेकिन इनमें से ज्यादातर उसी विचार के प्रतिनिधि थे जो लंबे वक्त तक सोवियत सत्ता द्वारा लेखक की पाबंदी को सही ठहराते आए थे। आपातकाल के वक्त जिनका मानना था देश में तानाशाही को स्वीकार करने में भला क्या आपत्ति है? अगर इसी बात को निर्मल वर्मा के शब्दों में कहा जाए तो- हम समाज में जो हिंसा और असहिष्णुता का वातावरण देखते हैं वो हिंदुओं और मुसलमानों की सांप्रदायिक असहिष्णुता नहीं बल्कि तथाकथित सेक्युलर मानसिकता की देन है जिसका प्रतिनिधित्व हमारा बुद्धिजीवी वर्ग करता है। 

              जी है और आज इसी बारे में बात करेंगे की जिस प्रकार मुस्लिम पक्ष भारत में अपने हक के लिए दंगे फसाद और हुडदंग करता है, उस प्रकार कभी मुस्लिमो को सारे आम पीड़ित करता चीन में क्यों नहीं करता, क्यों चीन के सामने सबकी बोलती बंद हो जाती है?

चीन में भय में जी रहे हैं मुस्लमान

              खैर, बात करें चीन की तो चीन में मुसलमान भय के वातावरण में जीने को मजबूर हैं। यहां के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले शीआन शहर के मुस्लिम देश छोड़कर जाने की बात करने लगे हैं। शीआन शहर की मुस्लिम आबादी से चीन के राष्ट्रीय ध्वज को फहराने के लिए एक समारोह शुरू करने के लिए कहा जा रहा है। शीआन शहर  शानक्सी प्रांत की राजधानी है। 7वीं शताब्दी से यहां मुस्लिम आबादी रह रही है। टैंग वंश के शासन के दौरान यहां मध्य एवं पश्चिम एशिया से आकर मुस्लिम आबादी बसी। मुस्लिम व्यापारी और सैनिक शीआन शहर में आकर बस गए। चीन की हान महिलाओं से शादी करके ये हुई कहलाए, जो बाद में चीन के 56 एथैनिक ग्रुप्स (जातीय समूह ) में शामिल हुए।

भारतीय मुस्लिम नहीं बल्कि चीन का मुसलमान भय के वातावरण में जी रहा है

              चीन की कुल आबादी में मुस्लिमों की संख्या 0.4 से लेकर 1.8 फीसदी के बीच है बदले गए घरों के बाहर लगे पुराने प्रतीक शीआन शहर की कुल आबादी 1 करोड़ है। इनमें करीब 65 हजार मुस्लिम आबादी है। द गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट का कहना है कि फूड स्टॉल लगाने वाले ये मुस्लिम देश छोड़कर जाने की बात कहने लगे हैं। रिपोर्ट का कहना है कि धीरे-धीरे यह पूरा शहर ही बदल गया है। मुसलमानों के घरों के प्रवेश द्वार पर अरबी और चीनी भाषा में लगे पुराने  संकेतों को बदल दिया गया है। शीआन की सबसे बड़ी मस्जिद के एक सदस्य का कहना है कि स्थानीय पार्टी के अधिकारियों ने एक ऐसा समारोह शुरू करने के लिए कहा है जिसमें चीन का राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा सके।

मस्जिद के बाहर राष्ट्रीय ध्वज और कई राजनीतिक पोस्टर लगा दिए हैं।

              मुस्लिमों के ग्रीष्मकालीन स्कूलों को बंद करने के लिए कहा गया है। हालांकि, यह आदेश सेंटर गर्वमेंट की तरफ से नहीं आया है, लेकिन शहर के बदलते परिवेशन ने लोगों को भयभीत कर दिया है। मुस्लिमों को पॉर्क खाने और शराब पीने के लिए किया जा रहा है मजबूर माओ ने मस्जिदों को फैक्ट्री में कर दिया था तब्दील। बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है जब चीन में मुस्लिम सरकार के निशाने पर रहे हों। 1960 में माओ की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान चीन में धार्मिक प्रथाओं और अनुष्ठानों पर पाबंदी लगा दी गई थी।

              मस्जिदों को फैक्ट्री, प्रशासनिक ऑफिस और कम्युनिटी सेंटर में तब्दील कर दिया गया था। शीआन में ही चीन की 14वीं शताब्दी की मस्जिद को टेंपररी स्टील उत्पादन करने वाली फैक्ट्री में ढाल दिया गया था। 300 साल पुरानी बेई गुआगंजी स्ट्रीट मस्जिद को शहर के सांस्कृतिक केंद्र और खेल भवन में तब्दील कर दिया गया था। 

क्या चीन इस्लाम को मानसिक बीमारी की तरह कर रहा है ट्रीट?

              संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में 10 लाख मुस्लिम नजरबंद शिविरों में हैं। इनमें से ज्यादातर उइगर मुस्लिम हैं जो कि चीन में रहने वाले मुस्लिम समुदाय में सबसे अल्पसंख्यक हैं। इनसे  जबरदस्ती अपनी धार्मिक मान्यताओं को छोड़ने और हर दिन घंटों कम्युनिस्ट पार्टी के प्रोपोगैंडा सॉन्ग को सुनने का दबाव बनाया जा रहा है। पिछले साल अगस्त से ही यह बहस तेज हो गई थी कि क्या चीन इस्लाम को मानसिक बीमारी की तरह ट्रीट कर रहा है? भारतीय मुस्लिम नहीं बल्कि चीन का मुसलमान भय के वातावरण में जी रहा है क्या चीन इस्लाम को मानसिक बीमारी की तरह ट्रीट कर रहा है।

खान-पान के साथ ही शराब पीने के लिए किया जा रहा है मजबूर

              मीडिया में ऐसी भी रिपोर्ट्स आईं थी कि चीन में मुस्लिमों को पॉर्क खाने और शराब पीने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इतना ही नहीं ऐसा न करने पर उत्पीड़त करने और जान से मार डालने तक की खबरें सामने आई थी। दरअसल, चीन में मुस्लिम आबादी 22 करोड़ के आसपास है। यहां तीन तरह के मुस्लिम समुदाय रहते हैं। ये उइगर, हुई और कैजेख्स हैं। चीन की कुल आबादी में मुस्लिमों की संख्या 0.4 से लेकर 1.8 के बीच है। हालात इतने विभत्स हैं कि अगर किसी उइगर मुस्लिम की दाड़ी बढ़ी हुई दिख गई तो उसे सीधे कैंप में भेज दिया जाता है। 

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              चीन अपने इन नजरबंद शिविरों को स्कूल का नाम देता आया है। चीनी अधिकारियों का कहना है कि इन नजरबंद शिविरों में अपराधियों को डाला जाता है। यानी चीन में मुस्लिम को अपराधियों की तरह और इस्लाम को घृणा की तरह ट्रीट किया जा रहा है। जहां भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है वहीं चीन में धार्मिक मान्यताओं को रोग की तरह देखा जाता है। अगर उइगर मुस्लिमों की बात की जाए तो चीन हमेशा से ही उन्हें घृणा के तौर पर देखता आया है और उसका मानना है कि एक दिन वो झिंजियाग को अपना अलग देश बना देंगे।

              चीन उइगर मुस्लिमों को चरमपंथी के तौर पर देखता आया है। लेकिन दुर्भाग्य है कि चीन में मुस्लिम उत्पीड़न को लेकर तथाकथित भारतीय सेक्यूलर बुद्धीजीवी न तो किसी तरह की बहस करते हैं और न ही विरोध। गांधी जी ने जब हिंदु-मुस्लिम समुदाय में सौहार्द की बात कही थी तो उनके ये दो समुदाय अल्पसंख्य और बहुसंख्यक नहीं थे।

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