Real Story Of Rani Padmawati | रानी पद्मावती की अनसुनी कहानी

Real Story Of Rani Padmawati

            इतिहास कि कई ऐसी कहानियां हमारे बीच शुमार है जो असल मे शायद एग्जिस्ट भी नहीं करती थी लेकिन फिर भी लोग उसे मानते है और फॉलो भी करते है . उन्ही कहानियो मे से एक कहानी है रानी पद्मावती कि कहानी. अगर इतिहास करो कि मैने तो कहा जाता है कि रानी पद्मावती बेहद खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती ke चर्चे दूर दूर तक फैले थे इतिहास मे रानी पद्मावती अपनी खूबसूरती ke कारण ही पॉपुलर हुयी और उनकी इसी पॉपुलैरिटी ke चर्चे हम आज कि मे करने वाले है

            रानी पद्मावती राजस्थान के जैसलमेर के राजा पुण्यपल भाटी कि बेटी थी . उसके बाद रानी पद्मावती ने मेवाड़ के राजा रावल रतन सिंह se शादी कि थी जिसके बाद वो मेवाड़ कि रानी बन गयी थी.

            ये वो दौर था जब दिल्ली के तख़्त पर अलाउद्दीन खिलजी का राज हुआ करता था . अब कहानी कि शुरुआत कुछ यु होती है कि राजा रावल रतन सिंह के दरबार मे राघव चेतन नाम का एक संगीतकार हुआ करता था . हालांकि वो एक आर्टिस्ट और एक पेंटर भी था और इसी के साथ वो एक जादूगर भी था . लेकिन इस बात कि किसी को भी कानो कान खबर नहीं थी.

            एक दिन जब राजा को ये बात मालूम पड़ी तब उन्होंने उसे मेवाड़ se भगा दिया . अब दोस्तों ज़ाहिर सी बात है जब आप को या मुझे कोई भगा देगा तो गुस्सा तो आएगी ही . शायद ऐसा ही कुछ राघव चेतन के साथ भी hua था और बदले कि भावना लिए वो अलाउद्दीन खिलजी के दरबार मे पहुँच गया . यहाँ पहुंच राघव चेतन ने सबसे पहले रानी पद्मावती पर अपना निशाना साधा और अलाउद्दीन खिलजी को रानी कि खूबसूरती के बारे मे बताने लगा और उन्हें मंत्र मुग्ध कर दिया.

            रानी कि खूबसूरती सुन अलाउद्दीन खिलजी के मन मे रानी पद्मावती को देखने कि तीव्र इच्छा हुयी . अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी अपनी पूरी सेना ले कर मेवाड़ कि तरफ युद्ध के लिए आगे बढे . लेकिन मेवाड़ को जीतना इतना आसान भी नहीं था . क्यूँ कि जिस दुर्ग मे राजा और रानी रहा करते थे उसका निर्माण एक ऊँची पहाड़ी पर हुआ था  जिससे दूर se आ रही सेना आसानी se दिख जाती है.

            और सारी सुख सुविधाओं कि चीज कि भी व्यवस्था किले के अंदर ही कर दी गयी थी. अलाउद्दीन खिलजी के अटैक के बाद जब अलाउद्दीन जीत ना सका तो वो मेवाड़ के किले ke बाहर ही तक़रीबन 8 महीने तक बैठा रहा . लेकिन उसके बाद jab अलाउद्दीन खिलजी के सब्र का बांध टूट गया तो वो वापस अपने किले कि तरफ रुख किया . अपने किले पर पहुंचते ही अलाउद्दीन ने राजा रावल रतन सिंह को एक पत्र भेजा जिसमे लिखा था कि वो बस एक बार रानी पद्मावती का दीदार करना चाहते है .

            एक बार रानी पद्मावती को देखने के बाद वो मेवाड़ पर हमला नहीं करेंगे. ये बात सुन कर राजा रावल रतन सिंह को गुस्सा आ गया कि ऐसे कैसे रानी पद्मावती किसी दूसरे आदमी के सामने जा सकती है. दरअसल दोस्तों उन दिनों बहुत पर्दा हुआ करता था और घर कि औरते अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द के सामने नहीं जाया करती थी. जब रानी पद्मावती को भी इस बात का पता चला तो वो भी बहुत गुस्सा गयी.

            पहले तो उन्होंने ऐसा करने se साफ इंकार कर दिया लेकिन बाद मे उनके दरबारियों ने एक आईडिया दिया कि क्यूँ ना रानी पद्मावती को पानी या शीशे मे परछाई दिखा दी जाये . इस आईडिया se सभी मन गए और रानी पद्मावती भी प्रजा के लिए ऐसा करने को मान गयी . रावल रतन सिंह ने जवाब मे अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती को देखने के लिए इन्विते किया, वहा अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मावती को देख कर उनकी खूबसूरती se और भी ज्यादा मोहित हो गया और अब तो उसने मन ही मन ठान लिया था कि वो रानी पद्मावती ko पाकर ही रहेंगे.

            जैसे मेहमान को विदा किया जाता है ठीक वैसे ही राजा रावल रतन सिंह भी अलाउद्दीन खिलजी को छोड़ने के लिए बाहर आये. देखते देखते पता भी नहीं चला और राजा रावल रतन सिंह दुर्ग se काफ़ी दूर आ गए थे जिसका फायदा उठा कर अलाउद्दीन खिलजी ने उन्हें बंदी बना लिया और उन्हें दिल्ली ले आया. जैसे ही ये बात रानी पद्मावती को पता चली वो काफ़ी दुखी हो गयी . उन्होंने एक प्लान बनाया और सैनिको को ये आदेश दिया कि वो अलाउद्दीन खिलजी के पास ये मैसेज भेजे कि रानी पद्मावती दिल्ली आने के लिए तैयार है जैसा कि अलाउद्दीन खिलजी चाहता था लेकिन उसके पहले वो राजा रावल रतन सिंह se मिलना चाहती है

            प्लान के मुताबिक रानी पद्मावती अपनी अपनी सखियों के साथ अलाउद्दीन खिलजी के किले मे पहुँचती है . रानी पद्मावती कि पालकी को एक बंद तम्बू मे उतारा गया जहा राजा रावल रतन सिंह उनसे मिलने वाले थे. जैसे ही राजा रावल वहा आते है वो देखते है कि असलियत मे वो रानी पद्मावती है ही नहीं बल्कि वो तो एक शूरवीर योद्धा बादल है जो राजा रावल रतन सिंह को ले जाने के लिए आये थे. और उनकी सखियों कि वेशभूषा मे भी सारे सैनिक ही थे .

            सैनिक बादल राजा रावल कि हाथकड़ियाँ तोड़ कर उन्हें मेवाड़ के किले कि तरफ ले जाता है . जब तक अलाउद्दीन खिलजी को इस pure षड़यंत्र का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और उधर राजा रावल रतन सिंह अपने किले के अंदर दाखिल हो चुके होते है . अलाउद्दीन खिलजी इस बात se बहुत ही गुस्सा हो गया और एक बार फिर se वो मेवाड़ के किले कि तरफ आगे बढ़ा.

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            इस बार अलाउद्दीन अपनी पूरी तैयारी के साथ आया था और धीरे धीरे वो किले के अंदर भी घुस रहा था . जैसे ही सबको पता चला कि अब अलाउद्दीन खिलजी जीत जायेगा वैसे ही वहा कि सारी औरते सहित रानी पद्मावती ने ये तय किया कि अलाउद्दीन खिलजी के बंदी बनने se अच्छा है कि वो अपने प्राण त्याग दे और सभी चिताये बनाने कि तैयारी मे लग गयी . एक तरफ मेवाड़ के सारे मर्द युद्ध मे अपनी जान दे रहे थे वही दूसरी तरफ सारी औरते भगवा कलर के कपडे पेहेन कर मंगल गीत गाते हुए एक एक कर आग मे अपने प्राण गवा रही थी. रानी पद्मावती ने भी चिता मे जल कर अपने प्राण गवा दिए . 

            बता दे कि रानी पद्मावती कि ये कहानी मालिक मुहम्मद जैसी ने पद्मावत नाम के एक महाकाव्य मे 1540 मे अवधि भाषा मे लिखी थी . और रानी पद्मावती कि ये घटना 1303 कि है यानि 237 साल बाद इस किताब को लिखा गया था . और सबसे हैरान कर देने वाली बात तो ये है कि इस महाकाव्य के आखिर मे मालिक मुहम्मद जैसी ने खुद लिखा कि ये महाकाव्य उन्होंने खुद लिखा है . इससे पता चलता है कि हो सकता है कि ये कहानी मालिक मुहम्मद jaysi कि एक इमेजिनशन हो.

            ये कहानी real है या फेक वो तो नहीं पता लेकिन कहानी मे रानी पद्मावती एक शूरवीर योद्धा राजा रावल रतन सिंह कि शूरवीर पत्नी के किरदार मे है और इसी किरदार के लिए वो विख्यात है

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