World Bank Expose
आपको मालूम हैं की विश्व बैंक एक international बैंक है जो दुनियाभर में देशों को उनके प्रोजेक्ट्स के लिए लोन देता है। विश्व बैंक को शुरुआत में International Bank for Reconstruction and Development कहा जाता था जिसे बाद में विश्व बैंक कहा जाने लगा। विश्व बैंक की स्थापना 1944 में bretton woods conference में हुई थी। शुरुआत में इसका उद्देश्य 1944 के second World War में तबाह हुए देशों के रीकंस्ट्रक्शन के लिए लोन देना था लेकिन बाद में रीकंस्ट्रक्शन से हटकर फोकस सिर्फ डेवलपमेंट पर चला गया। लेकिन World Bank और IMF के लिए सवाल यहा ये है की क्या ये world level के लोन और क्रेडिट से डील करने वाले।
हालांकि पूरी तरह से इसके कोई साक्ष नही है पर कोरोना के बाद जिस तरह से WHO का चीन के लिए ढाल बन कर बाकी देशों से बैर लेना और कोरोना जैसे जानलेवा बीमारी से बाकी देशों को पहले से न सतर्क करना एक इस विषय पर एक महत्वपूर्ण उदाहरण माना जा सकता है, जिसका विस्तार हम आज के इस वीडियो में करेंगे की क्या सच में World Bank भारत की अर्थव्यस्था के लिए हानिकारक साबित हो रही है?? कैसे IMF और world bank दुनिया के मजबूत देशों के साथ मिलकर भारत की बढ़ती इकोनॉमी पर चोट करने की कोशिश कर रहे है?
जैसा की आप सब जानते ही है की भारत का गुलामी का इतिहास कितना बड़ा है, और अगर भारत की अर्थव्यवस्था को आज उसके समय के गुलाम देशों से तुलना करे तो भारत का स्तर उन सभी से ऊंचा मिलेगा। पर चाहे वो बात हो गुलामी की या फिर नई मिली आजादी की दोनो ही समय भारत ने निर्णय क्षमता और सरकार दोनो ही एक परेशानी का विषय थी। और उसी समय लागू हुई विश्व बैंक संधि यानी के World Bank Treaty जो की एक Multifolical Treaty यानी बहुपक्षी संधि थी
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जिसमे शुरुआत में 75 देशों की भागीदारी थी पर अब 189 देशों की, अब आप भी सोच रहे होंगे तो इसमें इतना सस्पेंस बनाने वाली कौन सी बात है? तो हमारी मानिए बिल्कुल है क्योंकि वर्ल्ड बैंक की निर्माण, और भारत को जबरदस्ती सदस्यता लेने के लिए मजबूर किए जाने के पीछे के इरादे अब सबके सामने लाने की जरूरत है
अगर आप सोच रहे है की ऐसा क्यों हुआ की भारत को World Bank Treaty की सदस्यता लेने के लिए मजबूर किया गया तो चलिए समझते है की इसके पीछे अंग्रेजो के क्या मंसूबे थे। आजादी के समय हुआ विश्व बैंक का संगठन एक विश्व स्तरीय संस्था के रूप में हुआ था जिसका मकसब दुनिया के पिछड़े देशों और अरव्यवस्था को पटरी पर लाना था।
जिसके लिए विश्व के कुछ विकसित देशों ने मिलकर इसकी पेहल के रूप में विश्व बैंक का निर्माण किया और जिसका नेतृत्व हमेशा की तरह अमेरिका ने किया। और जिस समय world bank ki योजना के लिए देशों को इकट्ठा किया जा रहा था तब कई देशों ने अपने majority of votes का इस्तेमाल कर भारत को भी इसकी सदस्यता दिला दी, और चूंकि 1947- 50 के बीच का यह वही समय था जब भारत अंग्रेजो से अपनी बची खुचे resources और पैसे बचा रहा था और क्योंकि वर्ल्ड बैंक का मेंबर बनने के लिए बाकी देशों की तरह भारत को भी उसे सालाना एक मूल राशि यानी फंड जमा करना होता इसलिए भारत इस multilateral treaty में सम्मिलित नही होना चाहता था।
लेकिन एक नॉर्मल Bilateral Treaty की तरह जहा दो देश आपसी सहमति से साथ आते है और किसी एक पक्ष के चाह जानें या मांगें जाने पर इस योजना को वही समाप्त कर देने के बजाय अंग्रेजो ने भारत को multilateral treaty में फसाया जहा न ही वह अपनी मर्जी से आया था और न ही अपनी मर्जी से जा सकता है क्योंकि हर चीज majority votes पे निर्धारित है जो अमेरिका कभी भारत के पक्ष में होने नही देगा, अब अमेरिका ही क्यों?
क्योंकि इन सब के पीछे अमेरिका की arthvyavatha को सबसे शक्तिशाली बनाना था विश्व स्तरों की सभी organisations के हेड क्वार्टर(Headquarter) अमेरिका (America) में बेस्ड है। और हो भी क्यों न अमेरिका काफी सालो से इन organisations को दाना पानी जो देता आ रहा है। पारंपारिक रुप से विश्व बैंक का अध्यक्ष कोई अमेरिकी ही होता है। विश्व बैंक का Headquarter अमेरिका की राजधानी Washington में है।
वर्ल्ड बैंक दुनिया के सभी देशों से security money के नाम पर पैसे लेता है और फिर आर्थिक तंगी से गुजर रहे देशों को कर्ज़ देने के लिए उनसे मोटा ब्याज दर वसूलता है,
क्योंकि 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भारतीय मुद्रा को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मापा जाने लगा। 1 INR का मूल्य तब 1 USD के रूप में लिया जा सकता था, यह देखते हुए कि राष्ट्रीय बैलेंस शीट किसी भी क्रेडिट या डेबिट से मुक्त थी।
1950 में 1 INR का मूल्य 4.76 था। यह मूल्य 1966 तक जारी रहा। लेकिन 1950 के दशक से भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट देखी जाने लगी। यह अंतरराष्ट्रीय बाजार से देश के क्रेडिट के कारण था। क्योंकि एक तरफ लगातार भारत विश्व बैंक का सदस्य होने के नाते उसमे अपने फंड को जमा कर रहा था और दूसरी उसकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जब वह विश्व बैंक से कर्ज मांगता तो उसपे ब्याज सहित कई शर्ते लाद दी जाती जिनमे से भारत की करेंसी को Devaluate करना, Natural Resources को बेचना और public sector को privatise करना शामिल था।
जिससे भारत और चीन के 1962 के युद्ध, उसके बाद 1965 में भारत और पाकिस्तान के युद्ध और 1966 में देश में आए सूखे के कारण स्थिति और खराब हो गई थी। इन सभी ने वर्ष 1967 तक 1 डॉलर की विनिमय दर को 7.50 रुपये में बदल दिया। अरब पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन के उत्पादन को कम करने के निर्णय के कारण 1973 में हुए तेल के झटके के बाद 1974 में रुपया मूल्य 8.10 तक गिर गया।
स्थिति और उसके बाद के राजनीतिक संकट से निपटने के लिए, भारत को विदेशी मुद्रा उधार लेनी पड़ी। इसके परिणामस्वरूप भारतीय मुद्रा मूल्य में गिरावट आई। 1980 के दशक में विनिमय दर बिगड़ती गई और 1990 में 17.50 के उच्च मूल्य पर पहुंच गई। 1990 के दशक में जब भारत की अर्थव्यवस्था कठिन दौर से गुजर रही थी। उस समय सरकार द्वारा एकत्र किए गए राजस्व का 39% ब्याज भुगतान के लिए जिम्मेदार था।
राजकोषीय घाटा जीडीपी के 7.8% तक कम हो गया था, और भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार में डिफॉल्टर घोषित होने के कगार पर था। जैसे इस समय श्रीलंका है इस संकट ने भारतीय मुद्रा को और नीचे कर दिया। अवमूल्यन(Devaluation) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें देश अपने आंतरिक मूल्य को बरकरार रखते हुए अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी मुद्रा के मूल्य को कम कर देते हैं।
भारत ने अपने export market को सस्ता और अपने Import market को महंगा बनाने के लिए एक समान दृष्टिकोण अपनाया। Devaluation ने साल 1992 में 1 USD की विनिमय दर को 25.92 INR में बदल दिया। तब से indian currency की value 74.57 INR की वर्तमान दर के साथ गिरन लगी। 2004 में 1 डॉलर की कीमत 45.32 आईएनआर थी, और अगले दस वर्षों में यह बढ़कर 62.33 हो गई। 2016 में, फरवरी का महीना डॉलर से INR की उच्चतम दर को देखने का महीना था, जिसकी राशि 68.80 INR थी।
इस समय 1 USD ka current exchange rate 80.66 INR है