History of Kohinoor Diamond | कोहिनूर हीरा कहां पर है ?

History of Kohinoor Diamond

              कोहिनूर – ये नाम तों आप सभी ने सुना ही होगा और खास कर औरते तों ज़रूर ही सुनी होंगी क्यूंकि उन्हें हीरे से कुछ ज्यादा ही लगाव होता है। और जब बात कोहिनूर की हो तों उनकी आँखों की चमक देखने लायक होती है। लेकिन दोस्तों आप जान कर हैरान हो जायेंगे की कोहिनूर हीरा एक ऐसा हीरा है जिसकी आज तक कोई भी कीमत नहीं लगायी गयी है। आज तक ना ही इसे किसी ने खरीदा और ना ही इसे किसी ने बेचा. आखिर ऐसा क्यों? जानेंगे आज की वीडियो मे।

               इसी के साथ आज हम कोहिनूर के इतिहास के बारे मे भी बात करेंगे और ये भी जानेंगे की इस वक़्त वो कहा पर है, तों वीडियो मे लास्ट तक ज़रूर बने रेहना और हाँ अगर आप ने हमारे चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया तों प्लीज़ कर दे हम आगे भी ऐसी ही वीडियो ले कर आते रहेंगे. तों चलिए वीडियो को शुरू करते है. 

                कोहिनूर-जिसका मतलब है रोशनी का पहाड़ जिसकी आज तक कीमत नहीं लगायी जा सकी क्यू की जब से ये मिला है तभी से इसे एक राजा ने दूसरे राजा से जीता है या किसी को तौफे में दिया गया है।

                कोहिनूर को ले कर कई सारे मत सामने आए हैं। पुरानी संस्कृत किताब के अनुसार कोहिनूर हीरा आज से 5 हजार साल पहले पाया गया था जिस्का नाम स्यामंतक जेम था। और अगर कुछ हिंदू लीजेंड्स की माने तो श्री कृष्ण ने कोहिनूर जामवंत से प्राप्त किया था जिन्की बेटी जामवंती से उनकी शादी भी हुई थी। इसके अलावा ये भी कहा जाता है की 3200 ईसा पूर्व में ये नदी के बीच में पाया गया था।

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                  लेकिन अगर इतिहास की माने तो कोहिनूर आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा खान से पाया गया है जो उस वक्त काकातीय डायनास्टी के अंडर था।उस दौरन ये वारंगल के एक मंदिर में एक हिंदू देवता की आंख के तोर पर मंदिर की शोभा बढ़ा रहा था, लेकिन अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने इसे लूट लिया और इस तरह ये दिल्ली सल्तनत के हाथ लग गया ।

                 जब 1526 में बाबर ने दिल्ली पर हमला कर के इब्राहिम लोदी को हरा कर दिल्ली सल्तनत की सारी धन संपत्ती लूट ली थी उस ही धन संपत्ती में ये कोहिनूर हीरा भी मौजूद था। बाबर ने कोहिनूर को आकते हुए ये कहा था की कोहिनूर की कीमत इतनी है की इससे पूरे दुनिया को एक दिन का खाना खिलाया जा सकता है। कोहिनूर का ज़िक्र बाबर ने अपनी लिखी किताब बबरनामा में भी किया है।

                दोस्तो जब ये कोहिनूर बाबर के हाथ लगा उसके बाद ये पीढी दर पीढी आगे बढ़ने लगा जैसे बाबर के बाद ये हुमायूं के पास गया और उसके बाद अकबर और फिर ऐसे ही शाहजहां के कब्ज़े मे गया । शाहजहाँ ने कोहिनूर को पीकॉक थ्रोन में जड़वा दिया जिससे पीकॉक थ्रोन की किमत और भी ज्यादा बढ़ गई। दोस्तो आप जान कर हेरन हो जाएंगे की असली कोहिनूर हीरे का वज़न 793 कैरेट था। लेकिन जब औरंगजेब ने इस्कि कटिंग और एन्हांसमेंट के लिए इसे बोर्जीया को सौपा तब गल्ती से उसने इसे टुकड़े टुकड़े में कर दिया जिससे इस्का वजन 186 कैरेट हो गया।

                 उसके बाद सन 1739 में जब नादिर शाह ने मोहम्मद शाह रंगीला के शासन में दिल्ली पर हमला किया तभी उन्होने वहा का सब कुछ लूट लिया, उसी में पीकॉक थ्रोन भी शामिल था। लेकिन कोहिनूर अभी भी मोहम्मद शाह रंगीला के पास ही था क्यू की वो कोहिनूर को अपनी टर्बन में छुपा कर रखते थे और ये बात उनके कुछ खास लोगो को ही पता थी। उन्हीं खास लोगो में से किसी ने उनसे गद्दारी कर के ये राज नादिर शाह को बता दिया जिसे हड़पने के लिए नादिर शाह ने एक योजना बनाई और शाही दावत का एलान कर दिया जिस्मे नादिर शाह ने मोहम्मद शाह रंगीला को भी आमंत्रित किया।

                उसी दौरान नादिर शाह ने मोहम्मद शाह रंगीला से अपने टर्बन एक्सचेंज करने का ऑफर दिया, जैसे ही नादिर शाह को वो टर्बन मिलता है वो उसमे से कोहिनूर को ले लेता है। कोहिनूर की चमक और शान देख कर नादिर शाह ने ही इस्का नाम कोहिनूर रखा था।

                 नादिर शाह ने इसकी कीमत लगाते हुए ये कहा था की अगर कोई बलवान व्यक्तती चारो दिशो में पत्थर फेके और एक पत्थर हवे में फेके और उस जगह में अगर सोना भर दिया जाए तभी उसकी कीमत कोहिनूर के बराबर नहीं होंगी। वेल दोस्तो नादिर शाह की हत्या के बाद कोहिनूर अब उनके फॉरेमोस्ट जनरल अहमद शाह के कब्ज़े में आ चुका था। उसके बाद कोहिनूर पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह के हाथ में गया। लगभग 20 साल तक कोहिनूर महाराजा रंजीत सिंह के पास ही रहा।

                महाराजा रणजीत सिंह के मौत के बाद ये पीढी दर पीढी पहुचते हुए दुलीप सिंह के हाथ लगा जो महेज 10 साल के थे। और अब तक अंग्रेजी भी उत्तरी भारत में कब्ज़ा कर चुके थे और अब वो पंजाब के तरफ ही बढ़ रहे थे। उसके बाद दुलीप सिंह से वहा का सब कुछ ले लिया गया जिसमे कोहिनूर भी शमील था।

                ब्रिटिशर्स को कोहिनूर तो पसंद आया लेकिन उसका शेप नहीं इसलिय उन लोगो ने इसे फिर से आकार देने के चक्कर में इसे 186 कैरेट से 105.6 कैरेट का कर दिया जो ओवल शेप में हो चुका था। तो दोस्तो ये था काकतीय राजवंश से ब्रिटिश साम्राज्य तक कोहिनूर के पहुचने की कहानी।

                 आप लोगो के मन में एक सवाल उठ रहा होगा की इस वक्त कोहिनूर कहा है? तो बता दे की कोहिनूर इस वक़्त टावर ऑफ़ लंदन के ज्वेल हाउस में ब्रिटिशर्स के शान बन कर विराजमान है।

                   जहां कोहिनूर अपनी चमक और शान के लिए जाना जाता है वही वो अपने श्रापो के लिए भी खूब चर्चा में आया। इस्का सबसे पहले प्रमाण हमें एक हिंदू टेक्स्ट से मिलता है जो 1306 में लिखा गया था। इस टेक्स्ट मे लिखा गया था की जो शक़्स भी इस को जीतेगा वो शक़्स पूरी दुनिया पर राज करेगा लेकिन तबी से उसका बुरा वक्त भी शुरू हो जाएगा। इस्के अलावा उसमे ये भी लिखा था की केवल देवता और महिला ही इसे पहन सकती है।

इतिहास उठा कर देखे तो शायद ये सच है कि जिसने भी इसे पाया वो खतम ही हो गया। और दोस्तो वो तो होना ही था क्यू की जब कोई शक्तिशाली इंसान कमजोर इंसान को हरा देता है तो उसके मुह से श्राप के अलावा और कुछ नहीं निकलता है। और कोहिनूर को भी हमेंशा जीता ही गया है।

                    कोहिनूर को भारत लाने की कई बार कोषिश की गई। सबसे पहले सन 1947 में पहली कोशिश की गई थी। अगर उस वक्त कोहिनूर भारत आ जाता तों use भारत के इंडिपेंडेंस के सिंबल के रूप मे माना जाता. इसके अलावा पाकिस्तान ने भी कोहिनूर की मांग की थी क्यों की अंग्रेजों ने कोहिनूर को दुलीप सिंह से छीना था जो उस वक्त पाकिस्तान के इलाके पर राज किया करते थे। इस्के अलवा ईरान और अफगानिस्तान ने भी कोहिनूर पर अपना हक जमाया है।

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