History of Red Fort – एक अद्वितीय दर्शनीय स्थल: लाल किला

History of Red Fort

एक ऐसा अद्भुत किला जिसने अपनी खूबसूरती और विशालता से दुनिया भर में अपनी पहचान बना रखी है, क्या क्या ख़ास है इस किले में ? आखिर कब और कैसे शुरुआत हुई इस किले के निर्माण की ? क्या सच में इस किले को UNESCO World Heritage Site में शामिल किया गया है चलिए जानते है।

आज हम आपको देश विदेश में मशहूर शाही किला यानी दिल्ली के लाल किला के सफर पर लेकर चलने वाले है, अपनी खूबसूरती और इतिहास के लिए मशहूर ये किला बेहद ही ख़ास है जहाँ हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को देश के प्रधानमंत्री भारत का तिरंगा फहराते है, लाल किला दिल्ली शहर का Most famous tourist destination है जो हर साल लाखों  टूरिस्ट्स को अपनी ओर अट्रैक्ट करता है, इसके साथ ही ये दिलवालों की दिल्ली का सबसे बड़ा Memorial भी है। आपको बता दें एक समय ऐसा भी था जब 3 हजार लोग इस विशाल इमारत में रहा करते थे लेकिन 1857 में इस किले पर ब्रिटिश सरकार ने कब्ज़ा कर लिया जिसके बाद किले के कई सियासी महल नष्ट कर दिए गए। यही नहीं इस किले को ब्रिटिश सेना का headquarter भी बनाया गया, वहीँ 1857 में freedom struggle के बाद इसी किले में बहादुर शाह जफ़र जो मुग़लों के आखरी शासक थे उनपर मुकदमा चला था।

खेर ये तो कुछ नहीं इस किले से इतिहास के कई दिलचस्प किस्से जुड़े हुए है, ये किला अपने आप में एक ख़ास महत्व रखता है। जिस तरह मुग़ल बादशाह शाहजहां के द्वारा बनवाये गए ताजमहल को उसके सौंदर्य और आर्कषण की वजह से दुनिया के सात अजूबों में शुमार किया जाता है उसी तरह बादशाह शाहजहां द्वारा ही बनाया गया दिल्ली के लाल किले को दुनिया भर में खूब शोहरत मिली है जिसके लिए लोगों की सच्ची श्रद्धा और सम्मान है।

भारत के इस भव्य लाल किले के निर्माण की शुरुआत सम्राट शाहजहां द्वारा 1638 ईस्वी में कराइ गई थी, असल में जब से शाहजहां बादशाह की राज गद्दी पर बैठे थे तब से ही उन्होंने दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने का फैसला कर लिया था लेकिन अकबर बादशाह के शासन में देश की राजधानी आगरा थी, बताया जाता है अकबर दिल्ली को पसंद नहीं करते थे वहीँ शाहजहाँ को आगरा का मौसम यहाँ की गर्मी पसंद नहीं थी इसलिए शाहजहाँ ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली शिफ्ट करने का फैसला किया, जिसके लिए शाहजहां ने दिल्ली में एक शहर भी बसाया जिसका नाम Shahjahanabad रखा गया जिसे आज पुरानी दिल्ली के नाम से जाना जाता है।

आपको बता दें (256.67 एकड़) में फैले दिल्ली के लाल किला परिसर में बगले का पुराना किला सलीमगढ़ भी शामिल है जिसे 1546 में इस्लाम शाह सूरी ने बनवाया था, आपको बता दें इस खूबसूरत शाही किले को पूरा होने में लगभग एक दशक यानी 10 साल का समय लगा था, इस किले का निर्माण शाहजहां के दरबार के उस्ताद हाकिम और उस्ताद एहमद ने 1638 में शुरू किया था और 1648 में इसको पूरा किया गया था, octagonal शेप में बना शाही लाल किला अंग्रेजों के सत्ता में आने से पहले लगभग 200 सालों तक मुग़ल साम्राज्य की गद्दी बना रहा।

इस खूबसूरत इमारत के दो entrance door है लाहौरी गेट और दिल्ली गेट और टूरिस्ट जिस गेट से एंट्री करते है उसे लाहौरी गेट कहते है और ये लाल किले का main entrance door भी है। बता दें इसके अंदर एक लंबा बाजार है चट्टा चौक जिसकी दीवारें दुकानों से भरी है, असल में ये बाज़ार शाहजहाँ ने अपनी बेटियों जहाँआरा और रोशनआरा के लिए लगवाया था, इस मार्किट में ज्यादातर सभी लेडीज आइटम्स मिलते थे जैसे ज्वेलरी, पर्स और डायमंड वगेराह। बताया जाता है यहाँ लेडीज ही सामान बेचती थी और लेडीज ही यहाँ सामान खरीदने आती थी जेन्स की यहाँ एंट्री नहीं थी।

चट्टा चौक से आगे एक बड़ा खुला एरिया है, लाहौर गेट से चट्टा चौक तक आने वाली सड़क से लगे खुले मैदान के eastern साइड पर नक्कारखाना बना है, ये musicians के लिए बने महल का मेन डोर है, नक्कारखाना को नौबत गेट या फिर वेलकम गेट के नाम से भी जानते है एक तरह से इसे रिसेप्शन एरिया माना जाता था।

75 फ़ीट ऊँची लाल बलुआ पत्थर  (Red Sandstone) की दीवारों से घिरा लाल किला बेहद ही विशाल है जहाँ महल , Project Balconies , indoor canals (नाहर-ए-बिहिष्ट या स्वर्ग की धारा), बाग़ , शाही रानियों के private room , Royal Dining Area,  Entertainment Hall, और एक मस्जिद भी है। इसके अलावा किले के परिसर के अंदर most prominent structures की बात करे तो उसमे दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास शामिल है और ये मुग़ल युग की ज्यादातर सभी इमारतों में पाई जाने वाली एक Speciality है।

चलिए यहाँ हम आपको दीवान-ए-आम के बारे में नजदीक से बताते है।

दीवान-ए-आम एक large courtyard था जिसे general public के लिए बनाया गया था, यहाँ जो ornate throne balcony है उसे बादशाह के लिए बनाया गया था, जैसा की आप देख सकते है ये बादशाह का सिंहासन हुआ करता था, इसके साथ ही यहाँ जो चार पिलर्स है इसपर मखमल की गद्दी हुआ करती थी जिसपर बादशाह के बेटे बैठा करते थे और बीच में अपने सिंहासन पर बादशाह शाहजहाँ बैठा करते थे। यहाँ नीचे जो सफ़ेद रंग की टेबल है इसे वजीरों के लिए बनाया गया था, यानी पब्लिक जो न्याय मांगने के लिए आया करती थी वो पहले अपनी अर्जी वजीर को सुनाया करती थी और वजीर जाकर अर्जी को बादशाह तक पहुंचाया करते थे।

इसके साथ ही हम आपको दीवान-ए-ख़ास के भी नज़ारों से परिचित करा देते है। दीवान-ए-ख़ास पार्लियामेंट हुआ करती थी जैसे की आज के समय में है, यहाँ शासकों के मंत्रियों की मीटिंग्स हुआ करती थी, साथ ही ये बिल्डिंग काफी हीरे मोतियों से भरी हुई थी, इसके अलावा ये जो मार्बल का टेबल है इसपर रखा गया था तख़्त-ए-ताऊस जिसको मयूर सिंहासन भी कहा जाता था, बता दें इसे शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था और इसपर कोहिनूर लगवाया गया था।

नहर-ए-बहिश्त — यहाँ जो आप बीच में canal देख रहे है न इसे ही नहर-ए-बहिश्त कहा जाता है या फिर जन्नत की नहर के नाम से भी इसे जाना जाता है। यहाँ गर्मियों के समय पर पानी छोड़ा जाता था जिससे यहाँ का टेम्प्रेचर ज्यादा गरम नहीं होता था, इसके साथ ही यहाँ 6 रूम्स है जिसमे 3 एक तरफ और 3 दूसरी तरफ हैं। ये रूम्स डांसर्स के लिए बनाये गए थे साथ ही इसके नीचे godown था जहाँ म्यूजिकल इंट्रूमेंट्स को रखा जाता था। सबसे ख़ास बात तो यहाँ के ये पिल्लर्स है जहाँ उस समय पर मिरर लगे हुए थे और मोमबत्ती जलने से हर तरफ रौशनी हो जाया करती थी, जहाँ बादशाह बैठकर मस्त फव्वारों का मजा लिया करते थे।

लाल किले में आपको ख़ास महल भी देखने को मिलेगा, वैसे इस महल का नाम ख़ास क्यों रखा गया ये तो शायद आप इसके नाम से ही अंदाजा लगा सकते है लेकिन फिर भी हम आपको बता दें ख़ास महल बादशाह के रहने का स्थान यानी उनका रूम था, यहाँ बादशाह के लिए three बैडरूम सेट बनाया गया था। आपको बता दें यहाँ जो आपको नक्काशी देखने को मिल रही है इन सब पर गोल्ड लगाया गया था, इस ख़ास महल को पहचानने का ख़ास चिन्न भी है और वो महल का dome है, इस तरह के dome आपने कई किलों और महलों में देखें होंगे ये एक पहचान बनाई जाती है कि आम पब्लिक dome से ही इस महल को देखकर  पहचान सके की ये बादशाह के रहने का स्थान है।

अब चलिए हम आपको रंग महल के बारे में बताते है। ये जो सफ़ेद पत्थरों से बनी बिल्डिंग है ये रंग महल ही है जिसे शीश महल के नाम से भी जाना जाता है। जिस समय ब्रिटिश सेना ने हमला किया था उस समय पर आखरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर थे जो अपनी शायरियों की मेहफ़िल में बिजी थे, उस समय जब इनपर हमला हुआ तब बादशाह अपनी जान बचाकर जमुना गेट के रास्ते से होकर निकले थे, यहाँ से भागकर वो सीधा हुमायूं के मकबरे में छिप गए थे।

इस तरह लाल क़िले में बहुत सी ऐसी चीज है जो मुग़ल शासन को याद दिलाती है, हमाम के पश्चिम में मोती मस्जिद भी बनी है, इस मस्जिद को साल 1659 में बनाया गया था। असल में ये औरंगजेब की पर्सनल मस्जिद थी इसलिए ये किले के निर्माण के बाद बनाई गई थी, ये एक छोटी तीन dome वाली मस्जिद है जिसे तराशे हुए सफ़ेद संगमर्मर से बनाया गया है।

इसके अलावा इसके उत्तर में large formal garden भी बना हुआ है जिसे हयात बख्श बाग के नाम से जाना जाता है जिसका मतलब है garden of life। इसके अलावा लाल किले में ऐसी बहुत सी चीजे है जिन्हे देख आप मुगलों के शाही अंदाज की जानकारी ले सकते है जैसे हीरा महल , प्रिंसेस क्वार्टर, बाओली और ऐसी बहुत सी।

वैसे शायद आपको इस किले के असली नाम की जानकारी न हो तो हम आपको बता दें इमारत का असली नाम किला-ए-मुबारक था, लेकिन बाद में अंग्रेजों के सत्ता में आने के बाद इसका नाम बदला गया, अंग्रेजों ने इसकी विशाल लाल बलुआ पत्थर की दीवारों की वजह से ही इसका नाम रेड फोर्ट रख दिया था जिसके बाद स्थानीय लोगों ने इसे हिंदी में लाल किला नाम दे दिया।

आपको बता दें हमारे भारत की शान लाल क़िले को साल 2007 में UNESCO World Heritage Site Announce कर दिया गया था। इसके अलावा इस शाही किले को ancient monument , archeological site और residual act के तहत राष्ट्रिय महत्वता का स्मारक भी Announce कर दिया गया था। जिसका management Archaeological Survey of India द्वारा किया जाता है। इसके साथ ही लाल किले में museums है जो अलग अलग तरह की ऐतिहासिक कलाकृतियों को डिस्प्ले करते है।

वैसे लाल क़िले के बारे में इतना सब कुछ जानने के बाद आप भी यही सोच रहे होंगे की यार मुगलों के इस शाही किले में एक बार जाना तो बनता है बॉस,, तो भई आपको बता दें दिल्ली का लाल किला मंगलवार से रविवार तक खुला रहता है सोमवार को बंद रेहता है, लाल किला घूमने के लिये सुबह 7 बजे से लेकर शाम को 5:30 बजे तक खुला रहता है, अगर आप लाल किला पूरा और अच्छे से देखना चाहते है तो भाई आपको 2 से 3 घंटे का समय तो निकालना ही पड़ेगा। वैसे यहाँ जाने का सबसे अच्छा समय और मौसम नवंबर से फ़रवरी माना जाता है बाकी आपकी मर्जी है जब आप फ्री हो जा सकते है, लाल किले के पास आपको दो मेट्रो स्टेशन मिल जायेंगे एक वायलेट लाइन और दूसरा चांदनी चौक (येलो लाइन)।

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