How ISRO became the fourth largest Space research Centre | ISRO की ये जानकारी आपको कोई नहीं बताएगा

How ISRO became the fourth largest Space research Centre

              क्या आप ने ये तस्वीर देखी है जिसमे वैज्ञानिक देश के पहले रॉकेट को कैरी करने के लिए एक साइकिल का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये वक्त था 1963 का जब नासा द्वारा बनाया गया नाइके अपाचे रॉकेट को तिरुवनंतपुरम से लॉन्च किया जाना था। ये तो सिर्फ शुरुवात थी दोस्तो। अभी 2014 में भारत एशिया का पहला देश बना जिसने मार्स के ऑर्बिट में अपनी सैटेलाइट पहुचाई थी।

साइकिल से मार्स तक का सफर इतना आसान नहीं था लेकिन इसरो की मदद से ये सब कुछ हो गया और आज पूरे विश्व में ISRO चौथे नं का बेस्ट स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन बन गया है। इसरो का सफर बहुत ही मुश्किल भरा था, और लोग इसरो के इस सफर के बारे में और उसके contribution के बारे में जानना चाहते हैं 

              बता दे की स्पेस में एक्सपेरिमेंट्स का काम सन 1920 से ही चल रहा था जिस्मे से एसके मित्रा, मेघनाद साहा और सीवी रमन मेन थे। भले ही ये एक्सपेरिमेंट चल तो रहे थे लेकिन भारत के लिए स्पेस रिसर्च और स्पेस एक्सपेरिमेंट्स के लिये मेहेंगी टेक्नोलॉजी को डेवलप करना आसान नहीं था। जब 1957 में रूस ने स्पुतनिक 1 सैटेलाइट को लॉन्च किया तो भारत को भी अहसास हुआ की अब उसे भी स्पेस में एंट्री करने की जरूरत है और दुनिया को भी ये बताने की जरूरत है की भारत किसी भी मामले में पीछे नहीं है।

              रूस के स्पुतनिक 1 के लॉन्च के बड़े कदम के बाद, स्पेस आर्गेनाइजेशन का नेतृत्व करने वाले होमी भावा और विक्रम साराभाई तत्काल प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिलते हैं और उन्हे कन्वेन्स करते हैं कि अब भारत को भी अंतरिक्ष क्षेत्र में जाना चाहिए। . पंडित नेहरू दोनो की बात से प्रभाव हुए और उन्होनें अंतरिक्ष क्षेत्र में इन्वेस्ट करने की परमिशन दे दी। सारी तैय्यारिया करते करते 1962 में डॉ. विक्रम साराभाई के लीडरशिप मे फाइनली इंडियन नेशनल कमिटी for स्पेस रिसर्च यानी INCSPAR की स्थापना हुयी।

              INCSPAR के लॉन्च के बाद ही नासा ने नाइके अपाचे रॉकेट के रूप में INCSPAR को उसका पहला प्रोजेक्ट दिया जिसे INCSPAR को सफलतापूर्वक लॉन्च करना था। 21 नवंबर सन 1963 में तिरुवनंतपुरम के एक चर्च से नाइके अपाचे रॉकेट को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया गया।

              आप को बता दे की जब रॉकेट को लॉन्च किया गया था उस वक्त भारत के पास अपना कोई भी स्पेस स्टेशन नहीं था इसके अलावा 1962 में हुए भारत और चीन के बीच युद्ध की वजह से भारत की हालत और भी ज्यादा नाजुक हो गयी थी फिर भी होमी जे भाभा और विक्रम साराभाई के आत्मविश्वास ने भारत को भी अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलतापूर्वक इंटर करवा दीया। धीरे धीरे अब भारत स्पेस सेक्टर में आगे बढ़ता जा रहा था। 22वे स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त 1969 में INCSPAR को एक नया नाम दिया गया – इसरो यानी इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन ।

              इसके बाद इसरो ने रूस के स्पेस आर्गेनाइजेशन इंटरकोसमोस के साथ मिल कर भारत की पहली satellite आर्यभट्ट को 1975 में सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इस प्रोजेक्ट के सफल होने के बाद इसरो ने अब और बड़े प्रोजेक्ट जैसे सैटेलाइट और स्वदेशी ऑर्बिटल व्हीकल को बनाना भी शुरू कर दिए। 5 साल की मेहनत के बाद इसरो ने एसएलवी यानी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल बना कर सन 1980 में रोहिणी सीरीज 1 को पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए लॉन्च कर दिया। 

              भारत के लिए ये कोई छोटी काम्यबी नहीं थी बल्की अब भारत पूरे दुनिया में सात्वा ऐसा देश था जिसने पृथ्वी के ऑर्बिट में अपनी सैटेलाइट पहुचायी। स्पेस सेक्टर अब बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा था। अब ये हर तरह के रॉकेट और satellites को लॉन्च करने के लिए व्हीकलस बना रहा था। बवाल तो तब हो गया जब इसरो ने पीएसएलवी को लॉन्च किया। 1982 से ले कर 1995 तक यानी पूरे 13 साल तक पीएसएलवी पर काम किया गया और इससे कई satellites और राकेट लॉन्च किये गए। उन्ही मे से एक  बड़ा लॉन्च चंद्रयान 1 का था जिसे 2008 में लॉन्च किया गया था।

आप जान कर हेरन हो जाएंगे की चंद्रयान 1 के मिशन के दौरान ही चंद्रमा पर पानी के मौजूद होने का पता लगाया गया था जिससे दुनिया के स्पेस सेक्टर को एक नई दिशा मिली।

              पीएसएलवी के कारण से ही 2014 में मार्स ऑर्बिटल मिशन में मंगलयान को मार्स के ऑर्बिट में भी छोड़ा गया था। आप को जान कर बहुत गर्व महसुस होगा की इस प्रोजेक्ट के सफल होने के बाद भारत पूरे एशिया का पहला ऐसा देश बना जिसने मंगल के औरबिट में मंगलयान को भेजा था। इसके बाद पीएसएलवी के थ्रू 2017 में इसरो द्वारा दूसरा रिकॉर्ड बनाया गया जिसमे 104 सैटेलाइट को एक ही बार में स्पेस मे सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था।

              पीएसएलवी के बाद अब बारी थी जीएसएलवी यानी जियो सिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल के बनने की। आप जान कर हेयरन हो जाएंगे की इसरो की ये सारी कामयाबी एक दम स्वदेशी तरीके से हासील की गई है। एक वक्त था जब भारत देश दूसरे देश को सैटेलाइट बना कर देता था लॉन्च करने के लिए लेकिन वो देश लॉन्चिंग से मना कर देता था। और आज भारत ने वो सब बना लिया है की अब बाहरी देश हमारे भारत देश में अपने सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए आते हैं।

              हैरानी की बात तो ये है कि जिन वैज्ञानिकों ने ये काम्याबी हासिल की वो खुद भी पूरे तरह से स्वदेशी थे, यानि वो यही पर पैदा हुए, यही पर पले बढ़े, यही पर पढाई पूरी की, यही पर रिसर्च किया, यही पर  महान उपलब्धिया हासील की और फिर यहीं पे मर गए।

एक वक्त था जब दुनिया कहा करती थी की भारत कभी भी परमानु बम नहीं बना सकता और नाहीं वो कभी बना पाएगा। लेकिन सर होमी भावा को ये बात चुभ गई, उनका कहना था की जब पूरी दुनिया परमानु बम बना सकती है तो हम क्यों नहीं। उनके आत्म विश्वास और मेहनत से सर होमी भाव ने परमानु बम भी बना कर दीखा दिया और फिर उसका परीक्षण कर ये भी पूरी दुनिया को बता दिया की ऐसा कोई भी काम नहीं है जो भारत ना कर पाए।               

              इस्के साथ ही उन परमानु बम को हम मिसाइलों के ज़रीये स्पेस में भी ले जा सकते हैं और उनको टेस्ट कर सकते हैं ये भी भारत ने कर के देखा दिया। इस्के बाद ये बात चलने लगी की भारत परमाणु बम बना सकता है, स्पेस मे ले जा सकता है लेकिन भारत पानी के अंदर परमाणु बम का इस्तमाल नहीं कर सकता है। लेकिन भारत ने अरिहंत नाम की पांडुबी बना कर ये भी दुनिया को बता दिया की भारत पानी के 100 मिल अंदर जा कर भी परमानु परीक्षण कर सकता है। ये सारी सफलताये भारत ने एक दम स्वदेशी तरीके से हसील की है जिसमे बाहरी देशो का कोई भी हाथ नहीं है।

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