Prithviraj Chauhan History | पृथ्वीराज चौहान भारत का अंतिम हिन्दु सम्राट

prithviraj chauhan history

             हम जब भी इतिहास के शूरवीर राजा की बात करते हैं तो उसमे महान राजा पृथ्वीराज (3) जिन्हे हम पृथ्वीराज चौहान के नाम से जानते है उनका नाम ना आये ऐसा हो ही नहीं सकता। मात्र 11 साल की उमर में राज्य के शासन अनुशासन को चलाने वाले पृथ्वीराज चौहान ने इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरो में लिखवाया है। बता दे की इनकी कई प्रसिद्ध किताबे जैसे पृथ्वीराज रासो और मत चूको चौहान भी लिखी गई है जिनमे उनके गौरव और बालिदानो की गाथाएं लिखी गई है। पृथ्वीराज चौहान का इतिहास एक दम हिला देने वाला है, बहुत से लोग इनके जिंदगी के हर छोटे बड़े किस्सों को जनना चाहते हैं।यही वजह है की आज हम उनके इतिहास के हर छोटे  बड़े कारनामो को जानेंगे

             पृथ्वीराज चौहान का जन्म चाहमना राजवंश के राजा सोमेश्वर और उनकी रानी कपूरदेवी के बेटे के रूप में गुजरात में 1166 में हुआ था। पृथ्वीराज चौहान एक शूरवीर योद्धा होने के साथ साथ कफी बुद्धिमान भी थे जिन्हे 6 भाषाओ का संपूर्ण ज्ञान था और उन्हें गणित, चिकित्सा, इतिहास, सैन्य, पेंटिंग और धर्मशास्त्र का भी बहुत ज्ञान था। इस्के साथ साथ पृथ्वी राज चौहान को निशानेबाजी का भी शौक था जिसमे उन्हे महारथ हसिल थी जिससे वो आंख बंद कर के भी निशान साध सकते थे। उस वक्त चौहान राजवंश की राजधानी अजमेर हुआ करती थी।

             1177 में अपने पिता सोमेश्वर के मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान ने अजमेर की गद्दी को थामा। उस वक्त उनकी उमर मात्र 11 साल ही थी, उस वक्त उन्हें बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं था इसिलिए उनकी माता कपूरदेवी उनके सारे काम को संभाला करती थी। इसके अलावा इनके दरबार के कुछ मंत्री भी थे जो पृथ्वीराज चौहान के राज्याकर में कुर्सी के चार पाओ के तरह थे।

             अब चुकी पृथ्वीराज चौहान एक राजा के पद पर विराजमान हो गए थे तो उनके आस पास के राज्यों से भी मतभेद शुरू हो गए थे। इन राजाओं में सबसे पहला नाम उनके कजिन भाई नागार्जुन का ही है। राज्य पर अपना धौस दिखाने के लिए नागार्जुन ने चालकी करी और गुडापुरा जो आज गुरुग्राम के नाम से जाना जाता है अपने कब्ज़े में ले लिया। लेकिन वो ज्यादा समय तक अपने कब्ज़े में रख नहीं सका क्यू की पृथ्वीराज चौहान अब पूरी तरह से मैदान में उतर चुके थे। फिर क्या था पृथ्वीराज चौहान गुडापुरा को घेर कर उसे जीत लेते हैं। जीत की खुशी मनाने के बाद अब बारी थी भदनाकास की। भडनकास आज के दिल्ली के एरियाज में आने वालों को धमकिया देता रहता था जो उस वक्त chahamanas के अंडर था।

             अब जब दूसरे के घर में कोई घुसने की कोशिश करेगा तो भुगतना से पड़ेगा ही। तो बस पृथ्वीराज चौहान ने भी यही किया और भड़ानाकास को भारी हर का सामना करना पड़ा। रिकॉर्ड्स के मुताबिक पृथ्वीराज चौहान चंदेलस को भी हरा चुके थे जिनसे उनके दुश्मनो ki सांख्य में और इजाफा हो गया था क्योंकि बाद में  चंदेलस, कन्नौज के गढ़वालास से हाथ मिला लेते है , जिनके साथ चौहान के सम्बन्ध पहले से ही अच्छे नहीं थे। पृथ्वीराज चौहान का कन्नौज से राजनीतिक conflict तो था ही लेकिन वही उनके प्यार की शुरुआत भी होती है।

             गढ़वालास के राजा का नाम जयचंद था। जयचंद भी उस दौर के एक शक्तिशाली राजा के रूप में  उभार कर सामने आए। उनकी एक बेटी भी थी जिन्का नाम संयोगिता था। अब चुकी जयचंद एक शक्तिशाली राजा था तो वो चाहता था की वो राजाओ का भी राजा बन जाए और सब पर उसका राज चले। लेकिन पृथ्वीराज चौहान को ये मंजूर नहीं था और वो उनकी सर्वोच्चता को अस्वीकार कर देते हैं। इसी बात को ले कर जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच दुश्मनी की शुरुआत होती है।

             लेकिन लोगो में जहा दुश्मनी का बीज अपनी जड़ मजबूत कर रहा था वही जयचंद की बेटी संयोगिता के दिल में पृथ्वीराज चौहान के लिए प्यार पाने लगा था। उन्की शूरवीर होने की गाथाएं तो सुनी थी लेकिन उनके प्यार की असल में शुरुआत तो तब हुई जब चौहान राजवंश का चित्रकार पन्ना रे कन्नौज पाहुच कर संयोगिता को पृथ्वीराज चौहान की तस्वीर बना कर दिखाता है। संयोगिता तो पृथ्वीराज को पसंद करती थी, लेकिन पृथ्वीराज चौहान के दिल में संयोगिता के लिए प्यार तब जग जब पन्ना रे संयोगिता की तस्वीर पृथ्वीराज को दिखाते है।

             अभी दोनो के बिच प्यार की शुरुआत ही हुई थी की जयचंद संयोगिता की शादी के लिए स्वयंवर का इंतेज़ाम कर सभी राजाओ को न्योता भेज देते हैं सिवाय पृथ्वीराज चौहान  के। ये जान कर संयोगिता पृथ्वीराज चौहान को एक पत्र भेजती है जिसमें वो लिखती है की वो उन से शादी करना चाहती है। स्वयंवर में संयोगिता सभी राजाओं को अस्वीकार करते हुए जब आगे बढ़ती जाती है तो उन्हें पृथ्वीराज का एक पुतला राजदरबार के जगह खड़ा दिखाई पड़ता है जिसे जयचंद ने पृथ्वीराज को अपमनित करने के लिए खड़ा किआ था।पृथ्वीराज भी उस स्वयंवर में छुपे रहते हैं जो कुछ देर बाद सबके सामने आते हैं जिसके बाद संयोगिता उनके गले में फुलो की माला पहना देती है।

             उसके बाद पृथ्वीराज सबके सामने जयचंद को धामकी देते हैं की अगर हिम्मत हो तो उन्हें संयोगिता को ले जाने से रोक ले जिस्के बाद पृथ्वीराज संयोगिता को ले जाने में सफल होते हैं और ये सब देख कर जय चंद एक दम बौखला जाते है। और मन ही मन बदले की ठान लेते है। बदले के स्वरूप में वो मोहम्मद गोरी से हाथ मिला लेते हैं। वही मोहम्मद गौरी जो अफगानिस्तान से आया था।

             मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच 17 बार युद्ध हुआ जिसमे से 16 बार मोहम्मद गौरी को बुरी हार मिली लेकिन सत्रहवी बार पृथ्वीराज चौहान हार जाते हैं। युद्ध में हार जाने की सबसे बड़ी वजह जयचंद भी थे क्यू की जब युद्ध के लिए पृथ्वीराज चौहान सभी राजपूतों को एक जुट कर रहे थे तब जयचंद बदले की आग में जल रहा था। जयचंद ने अपनी मिलिट्री भी गौरी को दे दी।

             मोहम्मद गौरी से हार जाने के बाद पृथ्वीराज चौहान ज्यादा दिनो तक जिंदा नहीं रहे। लेजेंड्स के मुताबिक जब पृथ्वीराज मोहम्मद गौरी के सामने झुकने से इनकर करते हैं तो गौरी लोहे की जलती रॉड से उनकी आंखें फोड देते हैं। उसके बाद चांद बरदाई जो युद्ध में पृथ्वीराज के साथ थे, मोहम्मद गौरी से कहते हैं की निशानेबाजी ki एक प्रतियोगिता रखी जाये।मोहम्मद गौरी इसके लिए सहमत हो जाता है, जिसके बाद चांद बरदाई पृथ्वीराज को मोहम्मद गौरी की स्थिति अप्रत्यक्ष रूप से  दिखाते  हैं।

             उसके बाद पृथ्वीराज मोहम्मद गोरी पर निशाना लगा देते हैं। उसके बाद चांद बरदाई और पृथ्वीराज एक दसरे को भी खंजर मार लेते हैं। बहुत से लोग इन बातो को नहीं मानते और कहते हैं की मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज को बाद में मारा था। अब सच क्या है वो तो पता नहीं लेकिन ये थी पृथ्वीराज चौहान की अमर गाथा जो हमेशा उनकी प्रजा द्वारा याद रखी जाएगी।

admin

admin