Oppenheimer Biography – लाखों लोगो का हत्यारा या हीरो

Oppenheimer Biography

                       दुनिया में एटॉमिक बम को लाने वाला कौन है किसे फादर ऑफ़ दी एटॉमिक बॉम्ब कहा जाता है ,कौन है ओपनहाइमर और कैसे ये एटॉमिक बम को बनाने में सफल हो पाए चलिए जानते है 

                       ये कहानी है जूलियस रोबर्ट ओपनहाइमर (Julius Robert Oppenheimer) की जिन्हे फादर ऑफ़ दी एटॉमिक बॉम्ब भी कहा जाता है , कहानी की शुरुआत इनके बचपन से होती है इनका जन्म साल 1904 को न्यूयोर्क शहर में एक जर्मन ज्यूस german jews  परिवार में हुआ था । ये बचपन से ही पढ़ाई में जीनियस थे और केवल 10 साल की उम्र में ही ये हाई लेवल की फिजिक्स पढ़ रहे थे ,इनकी  नॉलेज का अंदाजा तो आप इस बात से ही लगा सकते है की सिर्फ 12 साल की उम्र में ही इन्हे न्यूयोर्क के Mineralogical क्लब में स्पीच देने के लिए बुलाया गया था। उसके बाद साल 1922 जब इन्होने आगे की पढ़ाई के लिए हारवर्ड में एडमिशन लिया तो वहां इन्होने अपनी 4 साल की डिग्री को 3 साल में ही ख़तम करदी। वैसे तो इन्हे हर सब्जेक्ट की अच्छी जानकारी थी केमिस्ट्री ,फिजिक्स ,फिलोसोफी, लिटरेचर के साथ रिलिजन की भी लेकिन हारवर्ड में इन्हे पता चला की इनका पैशन फिजिक्स था। 

                       साल 1927 में इन्होने PHD  की थी वो भी केवल 23 साल की उम्र में ,ये भले ही इतने बड़े जीनियस थे लेकिन इनका एक काला सच भी था ,इनके दोस्तों का कहना था कि ये चेन स्मोकर थे ,डिप्रेशन का शिकार थे। इनका ज्यादा से ज्यादा ध्यान पढ़ाई में रहता था दुनिया की बातो पर ये ध्यान नहीं देते थे। उसके बाद समय आता है 1930’s का जब अडोल्फ हिटलर की बादशाही के चर्चे हो रहे थे ,इन्होने देखा कि हिटलर की तानाशाही की वजह से जर्मन के कई बड़े साइंटिस्ट जर्मन छोड़कर अमेरिका आरहे है ,वो सभी साइंटिस्ट ज्यादतर जर्मन ज्यूस ही थे और ओपनहाइमर भी एक जर्मन ज्यूस परिवार से थे इसलिए इस बढ़ते हुए अत्याचार को देखते हुए इनका भी इंट्रेस्ट पॉलिटिक्स में बढ़ने लगा। इस तरह ये कई पोलिटिकल मीटिंग्स में जाने लगे और इन्होने पैसा भी डोनेट किया लेबर यूनियन और striking farm worker को।  

                       उसके बाद समय आता है साल 1939 जब वर्ल्ड वॉर 2 कि शुरुआत होती है लेकिन अमेरिका इस वॉर में शामिल नहीं होना चाहता था लेकिन फिर भी वो खुदको प्रपेयर कर रहा था ऐसे समय के लिए। असल में वॉर शुरू होने के 1 महीने पहले आल्बर्ट आइन्स्टाइन Albert Einstien और लियो स्ज़ीलार्ड LEO SZILARD ने अमेरिकन प्रेसिडेंड को एक लेटर लिखा था,जिसमे लिखा था हिटलर न्युक्लेअर हथियार पर काम कर रहा है इसलिए अमेरिका को तैयार रहना चाहिए। इसके बाद फ़ौरन ही एक्शन लिया गया मीटिंग हुई और साइंटिस्ट और मिलिट्री ऑफिशल्स की टीम बनायीं गई जो यूरेनियम की पोटेंशियल पर रिसर्च करने वाले थे कि क्या उससे हथियार बन सकते है।

                       असले में धरती पर नैचुरली यूरेनियम -238 आइसोटोप पाया जाता है ,और बहुत ही कम क्वांटिटी में यूरेनियम U-235 आइसोटोप पाया जाता है जिसे बॉम्ब बनाने में यूज़ किया जा सकता था। अब साईटिस्ट का काम था यूरेनियम 238 से 235 बनाने का लेकिन प्रोजेक्ट पर काम करने वाले साइंटिस्ट से बोला गया था कि आल्बर्ट आइन्स्टाइन को इस बारे में नहीं बताना।  वही ओपनहाइमर  भी अलग से नुक्लेअर मिशन पर रिसर्च कर रहे थे एडवर्ड टेलर और कुछ और साइंटिस्ट के साथ। 

                       1940 के समय पर यूरेनियम 235 आइसोटोप के साथ एक और एलिमेंट प्लूटोनियम मिला जिससे साइंटिस्ट का कहना था कि इससे भी न्युक्लेअर हथियार बनाया जा सकता है ,उसके कुछ समय के बाद अमेरिकन प्रेजिडेंट ने ब्रिटैन के प्राइम मिनिस्टर को मेसेज किया और कहा दोनों देशो को हाथ मिला लेना चाहिए एटॉमिक डेवलोपमेन्ट के लिए।  इस बात को लगभग 2 महीने भी नहीं हुए थे तभी जापान ने पर्ल हार्बर पर अटैक कर दिया और इस तरह से अमेरिका भी वर्ल्ड वॉर 2 में शामिल हो जाता है।

                       अब इस तरह से जो न्युक्लेअर हथियार बनाने का जो साइंटिस्ट का मिशन था अब वो मिलिट्री मिशन बन इस गया था,, प्रोजेक्ट में अमेरिका ने 2.2 बिलियन डॉलर का खर्चा किया। इसके साथ ही अमेरिका की आर्मी कॉर्प्स ऑफ़ इंजीनियर नाम से एक इंजीनियरिंग विंग थी जो आर्मी के लिए पोर्ट्स और एयरफील्ड बनाने का काम करती थी।  

                       अब अमेरिकन प्रेजिडेंट द्वारा इन्हे न्युक्लेअर हथियार बनाने की रिस्पांसिबिलिटी responsbility मिली तब इनका ऑफिस Manhattan न्यूयोर्क सिटी में था और इन्होने उस बिल्डिंग में ही अपने हेड क्वार्टस बना  दिया ,जिसके बाद शुरुआत होती है Manhattan प्रोजेक्ट की। उसके अगले महीने में Colonel leslie Richard Groves कर्नल लेस्ली रिचर्ड ग्रोव्स को इस प्रोजेक्ट के लिए हेड अप्पोइंट किया गया ,इन्होने इस प्रोजेक्ट में  डिसीज़न लिया कि ओपनहाइमर को एटॉमिक बॉम्ब के डिज़ाइन को तैयार करने के लिए लीडर के रूप में बुलाया जाये। अब इस प्रोजेक्ट के लिए एक शहर बसाया गया इस शहर को दी सीक्रेट सिटी भी कहा जाता है। 

                       अब इस तरह से इनके प्रोजेक्ट कि शुरुआत होती है कई सारे साइंटिस्ट और रिसर्चेस को  वहां भेजा जाता है जिनका काम था यूरेनियम 238 से यूर्नियाम 235 को बनाने का। अब इनके 4 डिफरेंट आइडियाज थे U 238 से 235 बनाने के ,पहला Gaseous Diffusion , centrifuge ,electromagnetic separation और liquid thermal diffusion ,,पहले इन चारो को टेस्ट किया गया जिसके बाद 2 मेथड ही कुछ हद तक सक्सेस हो रहे थे ,electromagnetic separation और Gaseous Diffusion।

                        इन सब के साथ ही एक अलग जगह वाशिंगटन में प्लूटोनियम को बनाने का भी काम चल रहा था और इसे भी यूरेनियम 238 के जरिये प्रोडूस किया जाता है। इसके बारे में ये भी पता चलता है की प्लूटोनियम 235 से कई ज्यादा fissionable और रेडियोएक्टिव है ,,इन दोनों लोकेशन के साथ प्रोजेक्ट Y के लिए एक ऐसी लोकेशन भी सर्च की जा रही थी जहाँ बॉम्ब्स को डिज़ाइन किया जान था।     

                       बॉम्ब्स को डिज़ाइन करने वाली लोकेशन के लिए जेनेरल ग्रोव्स का कहना था कि इसके लिए कोई दूर कि लोकेशन होनी चाहिए जहाँ सेक्रेटली काम हो सके और ऐसी लोकेशन के बारे में ओपनहाइमर अचे से जानते थे जो दूर भी हो और वहां सीक्रेटली काम भी किया जा सके। ये वो जगह है जहाँ ओपनहाइमर ने गर्मी का मौसम बड़े ही सुकून से बिताया था बड़ी बड़ी पहाड़ियों और खूबसूरत लैंडस्केप के बीच इसका नाम था न्यू मैक्सिको स्टेट की पिकोस वैली Pecos Valley।   इस तरह हर चीज की तैयारी हो चुकी थी और अब बस प्रेक्टिकली चैन रिएक्शन का टेस्ट करना था यानि की अब तक केवल थ्योरी के हिसाब से काम चल रहा था लेकिन प्रेक्टिकली ये होगा या नहीं इस बारे में वो भी नहीं जानते थे। 

                       2 दिसंबर साल 1942 में साइंटिस्ट एनरिको फर्मी (Enrico Fermi) ने यहाँ एक सक्सेसफुल प्रैक्टिकल किया ,जिसमे इन्होने यूनिवर्सिटी और शिकागो Chicago के स्क्वाश कोर्ट squach court में ये एक चैन रिएक्शन चलाते है जिससे एक बल्ब जलता है ,,यहाँ तक की सफलता से जनरल ग्रोव्स ओपनहाइमर के काम से और उनकी टेक्निक्स से काफी खुश थे और इनसे इम्प्रेस होकर वो ओपनहाइमर को प्रोएक्ट Y का डायरेक्टर भी बनाना चाहते थे लेकिन इनके इस डिसीज़न से कुछ सीनियर मिलिट्री ऑफिसर्स खुश नहीं थे क्योकि वो ओपनहाइमर पर अल्बर्ट आइंस्टाइन की तरह शक कर रहे थे क्योकि ओपनहाइमर के दोस्त उनके फॅमिली मेंबर्स उनके भाई सभी communists थे यही नहीं वो खुद भी लेफ्टविंग आइडियाज से बहुत ही ज्यादा influenced थे।    

                       अब अमेरिका को यही डर था कि इन लोगो कि ये कम्युनिस्ट सोच देश के लिए खतरा हो सकती है लेकिन इन सभी बातो के बाद भी जनरल ग्रोव्स खुद ही ओपनहाइमर को सपोर्ट करते है क्योकि वो उनके काम को अच्छे से जान गए थे और जनरल ग्रोव्स ओपनहाइमर से कहते है कि तुम्हारे बिना ये प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाएगा ,इसी दौरान साल 1943 में ओपनहाइमर को इस प्रोजेक्ट का लीडर बना दिया गया।

                        अब एक एटम बम बनाने में ओपनहाइमर की  एक्सपर्टीज की जरुरत पड़ी जैसे उनके क्रिटिकल मॉस के  कैलकुलेशन की ,,ये क्रिटिकल मास  यूरेनियम 235 या प्लूटोनियम का एक मिनिमम अमाउंट ऑफ़ मास है जो एक चैन रिएक्शन करने के लिए यूज़ किया जाता है। अब इस तरह से 1943 के एन्ड तक केवल 2 मिलीग्राम्स प्लूटोनियम ही प्रोडूस हो पाया था  इसलिए अमेरिका ने 2 एटम बम को बनाने का फैसला लिया। 

                       पहला बम्ब जो यूरेनियम 235 पर बेस्ड था जिसका नाम लिटिल बॉय दिया गया ,इस बम को गन टाइप डिज़ाइन किया गया इसमें 2  यूरेनियम 235 के मास को लिया गया और उन्हें एक दूसरे से कंबाइन किया गया इस कॉम्बिनेशन से ही क्रिटिकल मास रीच हो जाता है जिससे fission चैन रिएक्शन होता है और फिर इन सबसे जबरदस्त धमाका होता है। उसके बाद दूसरा बम प्लूटोनियम से तैयार किया गया इसका नाम फैट मैन रखा गया ,लेकिन इसको तैयार करने में काफी परेशानी आयी क्योकि इसको गन टाइप डिज़ाइन नहीं दे सकते थे वो इसलिए अगर प्लूटोनियम के 2 मास को एक साथ कंबाइन किया जाता तो उससे बड़ा रेक्शन हो सकता था जिससे क्रिटिकल मॉस पहुंचने से पहले ही fission  चैन ख़तम हो जाता। इस वजह से साइंटिस्ट ने प्लूटोनियम बम के लिए एक अलग डिज़ाइन तैयार किया। 

                       उन्होंने सोचा की प्लूटोनियम के मास को हाई प्रेशर और डेंसिटी के अंदर रखा जाये एक स्फेरिकल स्ट्रक्चर में ,इस तरह से जैसा इन्होंने सोचा था वैसा ही किया ।उन्होंने होलो sphere के अंदर प्लूटोनियम का सब क्रिटिकल मास  रखा गया और इसके स्फेयर के बाहर एक एक्सप्लोसिव का भी यूज़ किया गया ताकि  प्लूटोनियम के मास में  implosin  देखा जा सके।  अब इस तरह से बाहर एक्सप्लोसिव फटता जिससे प्लूटोनियम पर हाई प्रेशर पड़ता और फिर क्रिटिकल मास रीच कर जाता। इस कांसेप्ट को implosin  मेथड का नाम दिया गया।  

                        जो गन टाइप का मेथड था वो तो साइंटिस्ट  अच्छे से जानते थे और उसको यूज़ भी किय था लेकिन इस implosin मेथड को साइंटिस्ट ने केवल थोरिटिकालय theoritically ही सुना था लेकिन इसे प्रैक्टिकल नहीं किया था और यहाँ ओपेनहाइमर का कहना था की इसे टेस्ट करना बहुत जरुरी है। और जेनेरल ग्रोवेस का कहना था की हमारे पास वैसे भी प्लूटोनियम की क्वांटिटी ज्यादा नहीं है हम इसे टेस्ट नहीं कर सकते लेकिन जब ओपेनहाइमर ने कहा कि ये टेस्ट होना बहुत जरुरी है तो इनके कहने पर जनरल ग्रोव्स आखिर में मान गए जिसके बाद शुरुआत की गयी ट्रिनिटी टेस्ट की।    

                       16 जुलाई साल 1945 ये वो समय आया था जब टेस्ट न्युक्लेअर बम को फोड़ा जाना था इस टेस्ट बम का नाम था गैजेट ,इसे टेस्ट करने के लिए न्यू मैक्सिको के रेगिस्तान की जगह चुनी गयी ,इस बम में लगभग 13  पाउंड प्लूटोनियम था ,समय आगया था इस बड़े धमाके को करने का साइंटिस्ट ने एक स्टील टावर का यूज़ किया जिसके जरिये गैजेट को 100 फ़ीट की उचाई पर लटका दिया लगभग सुबह के 5:30 बजे इस बम्ब को फोड़ा जाता है। इस बम्ब के फटते ही काफी  धमाका हुआ जैसा ओपेनहाइमर ने सोचा था ये धमाका उससे कई ज्यादा पावरफुल था ये बम और इसके धमाके से तो भाईसाहब हर तरफ कोहराम मच गया।    

                       इस दमदार धमके के बाद ओपेनहाइमर भगवत गीता की कुछ लाइन बोलते है। वो इसलिए क्योकि ओपेनहाइमर को भगवत गीता की अच्छी जानकारी थी और साथ ही वो संस्कृत स्कॉलर भी थे ,यही नहीं ओपेनहाइमर भगवत गीता को अपनी लाइफ की मोस्ट influential बुक बताते है। अब इस ट्रिनिटी टेस्ट को किये हुए लगभग एक महीना भी नहीं हुआ था फिर भी लिटिल बॉय बम को हिरोशिमा पर गिरा दिया गया ये तो कुछ भी नहीं उसके करीबन 3 दिन बाद ही प्लूटोनियम के फैट मैन बम को नागासाकी में गिरा दिया जाता है।  

                       हिरोशिमा पर गिराय गए एटम बम को लेकर  ओपन हाइमर बहुत खुश थे ,इस धमाके को लेकर उनका कहना था कि काश इस बड़े धमाके का इस्तेमाल नाज़ी जर्मनी और हिटलर के खिलाफ किया जाता लेकिन जब नागासाकी में बम धमाका हुआ तो इससे ओपेनहाइमर खुद परेशान हो गए और इस दौरान वो खुद 17 अगस्त 1945 को वशिंगटन तक गए सेक्रेटरी ऑफ़ वॉर से मिलने इनका कहना था कि ये न्युक्लेअर हथियारों पर बेन लगाना चाहते है इन्हे बहुत बुरा लगा जो टेक्नोलॉजी इन्होने इंसानो तक पहुचायी है उससे उन्हें फ्यूचर का डर लगने लगा था वो ये सोच रहे थे कि आने वाले समय में अलग अलग देश इस टेक्नोलॉजी के साथ न जाने कैसे हथियार बनाना शुरू कर देंगे। 

                       नागासाकी में धमाके के करीब 2 महीने के बाद ये प्रेजिडेंट से मिले और ये उनसे मिलकर कहते है “I have blood on my hands” और प्रेजिडेंट गुस्से में उन्हें  बाहर निकाल देते है ,उसके बाद ओपेनहाइमर US  एटॉमिक  एनर्जी कमिशन के साथ काम करते है ताकि वो न्युक्लेअर अटैक्स को रोक सके। आगे चलकर जब अमेरिका हाइड्रोजन बम बनाने  की बात करता है तब ओपेनहाइमर इसके खिलाफ होते है लेकिन इनकी एक नहीं मानी जाती। इस दौरान उनके विचारों कि वजह से उनकी नौकरी भी छूट जाती है उसके बाद वो दुनिया में हर कही जाकर लेक्चर देने का काम करते थे। फिर साल 1965 में कैंसर की वजह से 32 साल कि उम्र में उनकी मौत हो जाती है और इनकी कहानी यहाँ ख़तम हो जाती है। 

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