Reality of Convent School
क्या आपसे कभी किसी ने पूछा है कि आपके बच्चे किस स्कूल में पढ़ते है? आपने जो जवाब दिया वो ठीक है ! पर अगर आपने ये कहा कि मेरे बच्चे कान्वेंट में पढ़ते है या St.thomos, St.xaviour या Don Bosco’s में पढ़ते है तो यकीन मानिये आपका स्टेटस सिंबल उस व्यक्ति की नजर में ऊंचा हो जायेगा, भले आप उस स्कूल के फी डिफाल्टर भी हो तो भी ! पर अगर आपने ये कहा कि मेरे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते है तो समझ लीजिये आपका स्टेटस सिंबल का ग्राफ जीरो हो गया।
वैसे तो स्कूलिंग और टीचिंग के मामले में आज के समय के न्यू पेरेंट्स और यहा तक की खुद बच्चे भी काफी सेलेक्टिव हो गए है, और सेलेक्टिव स्कूल्स की गिनती में सबसे पहला नंबर कॉन्वेंट स्कूल्स का ही आता है पर आप शायद इन कान्वेंट विद्यालयों की नीव कैसे रखी गई इस बारे में नहीं जानते क्युकी अगर जानते होते तो पढ़ाई छोड़िए आप कॉन्वेंट शब्द सुनकर ही अपने बच्चो को इन स्कूलों में पढ़ाने से पहले कई दफा सोचते
आज हम आपको कॉन्वेंट स्कूल्स की फाउंडेशन के पीछे काली अंग्रेजी परंपरा और सोच से पर्दा उठाएंगे और साथ ही साथ ये भी बताएंगे की कैसे कॉन्वेंट स्कूल्स भारतीय छवि और संस्कारो को तार तार कर रहे है, तो सही और पूरी जानकारों के लिए वीडियो को लास्ट तक जरूर देखे, चलिए फिर बिना किसी देरी के वीडियो को शुरू करते है।
क्या आप भी अपने बच्चों को गटर (convent) में भेजते हैं ? क्यो सवाल नही समझ आया, कोई बात नही चलिए थोड़ा फ्लैशबैक में चलते है, जवाब आपको खुद ब खुद मिल जाएगा। गटर से हमारा मतलब ये था कि आज से करीब 2500 साल पहले यूरोप में बच्चे पालने की परंपरा नहीं थी। बच्चा पैदा होते ही उसे टोकरी में रखकर लावारिस छोड़ दिया जाता था।
अगर उस बच्चे पर किसी चर्च के व्यक्ति की नजर पड़े तो वो बच जाता था नहीं तो उसे जानवर खा जाते थे, क्योंकि जिस यूरोप को हम आधुनिक व खुले विचारों वाला देश मानते हैं, आज से 500 वर्ष पहले वहाँ सामान्य व्यक्ति शादी भी नहीं कर सकता था क्योंकि उनके बहुत बड़े आइडियल और शासक का मानना था कि अगर आम जनता मैरेज करेगी तो उनका परिवार होगा, जिससे समाज बढ़ेगा और समाज होगा तो समाज शक्तिशाली बनेगा, शक्तिशाली हो गया तो वो राजपरिवार के लिए खतरा बन जाएगा।
इसलिए आम लोगो को मैरेज न करने दिया जाता था और क्युकी अंग्रेजी परंपरा में फैमिली से पहले फिजिकल नीड्स और फिजिकल रिलेशनशिप्स को इमूर्टेंस दी जाती थी इसलिए बिना मैरेज के जो बच्चे पैदा होते थे उन्हें एक टोकरी में छोड़ दिया जाता था ताकि उन्हें पता न चले कि कौन उनके माँ-बाप हैं, कुछ सालो तक यही सिलसिला चला पर जैसे जैसे लोगो का दिमाग और मॉडर्न होने लगा इन बच्चों की देखरेख और जान की कीमत भी समझी जाने लगी इसलिए उन्हें एक साम्प्रदायिक संस्था(Communal Institution) में रखा जाने लगा, जिसे वे कान्वेंट कहते थे। उस institute का को भी हेड होता था उसे ही माँ- बाप समझे इसलिए उन्हें फादर, मदर, सिस्टर कहा जाने लगा।
आप के मन में भी ये खयाल आ रहा होगा और आप सोच रहें होंगे की उस समय अमेरिका(America) यूरोप(Europe) की क्या conditions थी, तो normal बच्चो के लिए पब्लिक स्कूल्स की शुरुआत सबसे पहले इंग्लैंड में सन 1868 में हुई थी, उसके बाद बाकी यूरोप अमेरिका में यानी जब भारत में प्रत्येक गांव में एक गुरुकुल था, 97% literacy थी, तब कही जाकर इंग्लैंड के बच्चों को पढ़ने का मौका मिला।
अब आप सोच रहे होंगे की तो फिर क्या पहले इंग्लैंड में स्कूल नहीं होते थे ? होते थे लेकिन महलों के भीतर, वहाँ ऐसी मान्यता थी कि शिक्षा केवल राजकीय व्यक्तियों को ही देनी चाहिए बाकियो को तो सेवा करनी चाहिए। ये तो था अंग्रेजी धरती पर कॉन्वेंट स्कूल का निजाद पर चलिए अब जान लेते है की भारत में गुरुकुल प्रथा को समाप्त कर कैसे कॉन्वेंट स्कूल्स की शुरआत हुई।
एजुकेशन में एक लीगल एडवाइस के लिए Lord Macaulay ने 2 फरवरी, 1835 को अपने Minute नाम के लेटर को Governor-General’s Council के सामने पेश किया जिसे एक्सेप्ट करते हुए William Bentinck ने English Education Act, 1835 को पास करते हुए भारत में मॉडर्न ब्रिटिश एजुकेशन की नीव रखी। इसके बाद भारत से लॉर्ड मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी भी लिखी थी जिसमे उन्होंने भारत की संस्कारशाला को खतम करने के अपने इरादे को साफ तौर पर जताया था, Macaulay ने लिखा था कि, मैंने जो कॉन्वेंट स्कूलों की स्थापना की है, इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में, संस्कृति के बारे में, परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, जब ऐसे बच्चे होंगे भारत में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।”
उन्होंने कहा था कि ‘मैं यहाँ (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डालना चाहता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति को गलत कहेंगे, मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे, माता-पिता और बड़ो को हाथ जोड़ के प्रणाम करने में शर्म महसूस करेंगे, साधु-संतों को ढोंगी कहेंगे, वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे!’
उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ-साफ दिखाई दे रही है, आज कॉन्वेंट स्कूल की शिक्षा पद्धति के कारण JNU जैसी यूनवर्सिटी में छात्र हिन्दू देवी-देवताओं को ही गालियां बोल रहे हैं, दारू पी रहे हैं, मांस खा रहे हैं, दुष्कर्म कर रहे हैं, बॉलीवुड, मीडिया ,टीवी सीरियलों में लोग हिन्दू तो दिखते हैं लेकिन दिलोदिमाग से अंग्रेज होते जा रहे हैं । इसलिए हिन्दू देवी-देवताओं, साधु-संतों, हिन्दू त्यौहारों के खिलाफ हो गए हैं।
जैसा की कॉन्वेंट में पढ़ने वाले सभी स्टूडेंट्स जानते है की भारत में कॉन्वेंट स्कूलों में कोई हिन्दू त्यौहार नही मनाने देते हैं और न ही उन दिनों में छुट्टियां दी जाती हैं हालांकि क्रिसमस के मौके पर कॉन्वेंट स्कूल 10 से 12 दिनों का हॉलीडे पैकेज देते है, इसके अलावा अगर कोई स्टूडेंट तिलक या मेहंदी लगाकर आए तो भी उनको सजा दी जाती है, मतलब हिन्दू संस्कृति मिटाने का खुला षडयंत्र रचा जा रहा है, कॉन्वेंट स्कूल में बच्चों के यौन शोषण के मामले भी कई बार सामने आए हैं।
अब आप ही तय करें आपको क्या चाहिए कान्वेंट ? या गुरुकुल ?
भारत ने वेद-पुराण, उपनिषदों से पूरे विश्व को सही जीवन जीने की ढंग सिखाया है। इससे भारतीय बच्चे ही क्यों वंचित रहे ?
जब मदरसों में कुरान पढ़ाई जाती है, मिशनरी के स्कूलों में बाइबल तो हमारे स्कूल-कॉलेजों में रामायण, महाभारत व गीता क्यों नहीं पढ़ाई जाएँ ?
जबकि मदरसों व मिशनरियों में शिक्षा के माध्यम से धार्मिक उन्माद बढ़ाया जाता है और हिन्दू धर्म की शिक्षा देश, दुनिया के हित में है। सभी हिन्दू अभिभावकों को भी कॉन्वेंट स्कूल में हिन्दू छात्रों पर पड़ने वाले गलत संस्कारों तथा उनके साथ हो रहे टॉर्चर को देखते हुए अपने बच्चों को वहां नहीं भेजना चाहिए।
कॉन्वेंट स्कूल का संपूर्ण बहिष्कार करना चाहिए। जहाँ अभी मांग की जा रही है कि अपने भारतीय स्कूल में सूर्य नमस्कार पर रोक लगे, तो क्या अन्य शिक्षण संस्थानों में इस पर रोक नहीं लगनी चाहिए? यह बेशक आपको सुनने में गलत लगे, लेकिन यह बात आप किसी कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे से पता कर सकते हैं कि यहाँ के वातावरण में एक ख़ास धार्मिक विचारों और ख़ास धर्म को महत्व दिया जाता है।
हमारे अपने देश के इतिहास के साथ यहाँ न्याय नहीं हो पा रहा है। विकसित होने के लिए जो परिभाषा यहाँ लिखी जा रही है, वह ह्यूमन और नेचर केन्द्रित नहीं होती है। हमारे इतिहास को जीवित रखने का कोई भी कोशिश यहाँ नहीं होता है।