आपको पता है की भारतीय व्यक्तियों और कुछ कंपनियों द्वारा स्विस बैंकों में जमा किया गया धन 2021 के अंत में 47.3% बढ़कर 3.83 Arab Swiss Franc यानी 30,500 करोड़ रुपए से अधिक जा पहुंच गया है। ये 14 साल में सबसे अधिक है। 2020 के अंत में इंडियन कस्टमर्स के कुल 2.55 Billion Swiss Franc (20,700 करोड़ रुपए) जमा थे। इसके बाद लगातार दूसरे साल इसमें बढ़ोतरी देखने को मिली है। यह जानकारी स्विट्जरलैंड(Switzerland) के केंद्रीय बैंक द्वारा गुरुवार को जारी की गई सालाना आंकड़ों की रिपोर्ट से सामने आई है।
जैसा कि आपने सुना की स्विस बैंक में इंडियन अकाउंट होल्डर्स की संख्या में पिछले दो सालों में इजाफा देखने को मिला है। तो आज हम आपको बताएंगे की कैसे स्विस बैंक में भारत के लोगो का करोड़ों का काला धन जमा है, कैसे बनता है ये काला धन, क्यों सिर्फ स्विस बैंक में ही जमा होती है ये धनराशि, और भी बहुत कुछ
स्विस बैंकों में विदेशी ग्राहकों के धन के मामले में ब्रिटेन(Britain) सबसे ऊपर है, इसके बाद दूसरे स्थान पर अमेरिका (America) है। टॉप 10 में West Indies Germany, France, Singapore, Hongkong, Luxembourg, Bahamas, Netherland, Kemain और Cyprus जैसे देश शामिल हैं। भारत को लिस्ट में 44वां मिला है इसके साथ भारत के कुछ कड़े प्रतिद्वंदी Russia 15वें स्थान और China 24वें स्थान पर हैं।
स्विस बैंक ब्लैक मनी का गढ़ इसलिए बनता है क्योंकि स्विट्जरलैंड में जितने भी बैंक हैं उन्हें स्विस बैंक कहा जाता है। स्विट्जरलैंड टैक्स हैवन(Tax Heaven)के नाम से जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आप यहां जितना भी पैसा जमा कर लें आपको बेहद मामूली tax का भगुतान करना होता है। साथ ही हर देश की तरह स्विट्जरलैंड में भी बैंक Secrecy law (गोपनीयता कानून) लागू होता है। लेकिन यहां पर कानून थोड़ा अलग है। स्विस बैंकिंग एक्ट(Swiss Banking Act) (1934) के तहत बैंक अपने खाताधारकों की जानकारी उनकी अनुमति के बिना सार्वजनिक नहीं करता है।
इतना ही नहीं अगर खाताधारक अपने देश में Financial Irregularities के तले दबे है और स्विट्जरलैंड में उन पर ऐसा कोई मामला नहीं है तो पुलिस से लेकर अदालत तक बैंक से उसके ग्राहक के बारे में कोई जानकारी नहीं मांग सकते हैं। अगर स्विस बैंककर्मी किसी खाते की जानकारी लीक करता है तो उसे छह महीने की कैद के अलावा 50,000 Francs तक का जुर्माना हो सकता है।
अगर बात करे स्विस बैंक में एकाउंट होल्डर होने की age criteria की तो 18 साल से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति स्विस बैंक में खाता खुलवा सकता है। हालांकि, अगर बैंक को ये शक होता है कि पैसा जमा कराने वाला व्यक्ति किसी खास सियासी मकसद से ऐसा कर रहा है या जमा कराया जा रहा पैसा गैर-कानूनी है, तो वो आवेदन खारिज कर सकता है। स्विट्जरलैंड में लगभग 400 बैंक हैं, जिनमें यूबीएस(UBS) और क्रेडिट सुइस ग्रुप (Credit Suisse Group) सबसे बड़े हैं और इन दोनों के पास सभी बैंकों की बैलेंस शीट(Balance Sheet) का आधे से ज्यादा बड़ा हिस्सा है।
जिन खातों को यहां गोपनीय रखा जाता है उन्हें ‘नंबर्ड अकाउंट’ (Numbered Account) कहते हैं। इन खाते से जुड़ी सारी बातें बिना किसी का नाम लिए केवल अकाउंट नंबर के आधार पर होती हैं। बैंक में कुछ ही लोग होते हैं जो ये जानते हैं कि बैंक खाता किसका है। लेकिन ये अकाउंट आसानी से नहीं मिलते। माना जाता है कि जो लोग पकड़े नहीं जाना चाहते, वो बैंक के क्रेडिट या डेबिट कार्ड(Credit, Debit Card or cheque) या चेक सुविधा नहीं लेते हैं।
वहीं भारत के पड़ोसी देश स्विस बैंकों में पैसा जमा कराने के मामले में काफी पीछे हैं। इस सूची में पाकिस्तान(Pakistan) 82, बांग्लादेश(Bangladesh) 89, नेपाल(Nepal) 109, श्रीलंका (Sri Lanka) 141, म्यांमार(Mayanmar) 187 और भूटान(Bhutan) 193वें नंबर पर है। 1996 से लेकर साल 2007 तक भारत टॉप 50 देशों में शामिल था। 2007 के बाद भारत की रैंकिंग में गिरावट आनी शुरू हुई। 2018 में भारतीयों की जमा रकम में 6 फीसदी की कमी देखी गई। तब यह करीब 6757 करोड़ रुपये थी।
सर्च थ्योरी का ऐसा मानना है की लोग लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम(Liberalised Remittance Scheme) का फायदा उठा रहे है। जिसके कारण सरकार ने कहा है कि स्विस बैंक में जमा पूरी रकम को कालाधन मानना गलत है। स्विस नेशनल बैंक(Swiss National Bank) की रिपोर्ट में इस धन को उसके ग्राहकों के प्रति देनदारी के रूप में दिखाया गया है, इसलिए यह स्पष्ट नहीं होता कि इसमें से कितना कालाधन है। लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) इसके पीछे एक बड़ा कारण हो सकती है।
मोदी सरकार के शुरुआती तीन साल में स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा लगातार घट रहा था। लेकिन चौथे साल में पहली बार यह रकम अचानक से 50 फीसदी तक बढ़ गई। यह 13 साल में सबसे तेज बढ़ोतरी थी। वर्ष 2004 में स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा 56 प्रतिशत तक बढ़ा था।
स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा 6757 करोड़ में से कस्टमर डिपॉजिट लगभग आधा है। हर भारतीय 2.50 लाख डॉलर जमा करा सकता है। दरअसल विदेशों में पैसे जमा कराना लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत जायज है। यह योजना पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम(P. Chidambaram के कार्यकाल में 4 February 2014 को शुरू हुई थी। उस समय इसके तहत मात्र 25 हजार डॉलर विदेश ले जाने की इजाजत थी।
आज के समय में इसके तहत कोई भी व्यक्ति प्रतिवर्ष 2.50 लाख डॉलर तक बाहर भेज सकता है। यह संभव है कि स्विस नेशनल बैंक में जमा रकम का एक बड़ा हिस्सा लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत ही जमा किया गया हो। पिछली सरकार में Finance Minister Piyush Goyal का मानना था कि 40 प्रतिशत से अधिक की धनराशि इसी स्कीम के तहत जमा की गई हो सकती है।
कुछ इसी तरह के विचार former Finance Minister Arun Jaitley ने भी व्यक्त किए थे और कहा था कि सारा पैसा टैक्स चोरी का नहीं हो सकता। स्विस बैंकों में Global level पर नागरिक और कंपनियों द्वारा धन जमा कराने के मामले में 2017 से ब्रिटेन शीर्ष पर बना हुआ है, जबकि अमेरिका दूसरे नंबर पर है। हर वर्ष जारी होती रिपोर्ट स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक द्वारा इन आधिकारिक आंकड़ों को सालाना आधार पर जारी किया जाता है। अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि भारतीय और अन्य देशों के लोग अपनी अवैध कमाई को स्विस बैंकों में जमा कराते हैं, जिसे legal tax से बचने की सुरक्षित पनाहगाह माना जाता है।
हालांकि स्विट्जरलैंड ने भारत समेत कई देशों के साथ transparency रखते हुए सूचना साझा करने की Treaty पर signatures किए हैं। स्विट्जरलैंड ने स्विस बैंकों में काला धन रखने वाले भारतीय खाताधारकों पर कार्रवाई के लिए भारत के साथ संबंधित सूचनाएं साझा करने की प्रक्रिया तेज करते हुए एक दर्जन से ज्यादा भारतीय नामों का खुलासा किया है।
14 व्यक्तियों लोगों के बारे में सूचना साझा करने से पहले उनको नोटिस जारी किए गए थे। नियमों के तहत इस तरह के नोटिस उन्हें उनके खातों के बारे में भारत सरकार को जानकारी देने से खिलाफ अपील करने का एक अंतिम मौका देने के लिए जारी किए जाते हैं।
तो आपका इस मुद्दे पर क्या कहना है, कैसे होगा इस चीज का निवारण? सरकार कैसे लगाएगी इस टैक्स चोरी पर रोक? कब खत्म हो पाएगा भारत से करप्शन? इन सारे सवालों के जवाब और अपनी अपनी राय आप हमे कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा।