साईं बाबा कौन हैं? साईं कहां से आए और कैसे बने भक्तों के साईं बाबा जिनके एक दर्शन पाकर भक्त अपना जीवन धन्य मानने लगते हैं। यदि शंकराचार्य ने साईं को मुसलमान फकीर कहा है। खुद स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि साईं मांसाहारी थे, लोगों के खतना करवाते थे, पिंडारी समाज की औलाद थे जो लुटेरा समाज थे। ऐसे में वह हमारा आदर्श नहीं हो सकता। क्या शंकराचार्य ने ऐसे ही हवा में बात कह दी? बगैर किसी तथ्यों के? यदि नहीं, तो क्या है इसके पीछे के तथ्य?
साईं का जन्म 1830 में हुआ, पर इन्होंने आजादी की लड़ाई में भारतीयों की मदद करना जरूरी नहीं समझा, क्योंकि वे भारतीय नहीं थे। वे अंग्रेजों के जासूस थे। अफगानिस्तानी पंडारियों के समाज से थे और उन्हीं के साथ उनके पिता भारत आए थे। उनके पिता का नाम बहरुद्दीन था और उनका नाम चांद मियां।
साईं बाबा को हिन्दू एक भगवान् की तरह लोग पूजते हैं और आजकल हर जगह आपको साईं बाबा का मंदिर मिल जाएगा और लगभग सभी घरों में साईं बाबा की मूर्ती मिल जाएगी। साईं बाबा को हम बिना कुछ जाने समझे पूजते है। लेकिन क्या आपको पता है कि वो एक मुस्लिम थे।
साईं शब्द फारसी का है जिसका अर्थ होता है संत। उस समय भारत के पाकिस्तानी हिस्से में मुस्लिम संत के लिए साईं शब्द का प्रयोग होता था। पुस्तक साई सत्चरित्र अध्याय 5, 14, 50 साईं बाबा बीडी चिलम पीते थे और अपने भक्तो को भी पीने के लिए देते थे, जिस कारण उन्हें दमा था, साईं बाबा खाने के समय फातिहा कुरान पढ़ते थे
साईं बाबा ने रहने के लिए मस्जिद का ही चयन क्यों किया जबकि शिरडी में और भी जगह थीं या वो नीम के पेड़ के नीचे कुटिया बना कर भी रह सकते थे या किसी मंदिर में जबकि भारत में मंदिर में रहना बहुत ही आसान है।
साईं ने कभी ये नहीं कहा कि “सबका मालिक एक है”
वो तो हम टीवी सीरियल देख कर पूजने लगे अन्यथा साईं बाबा हमेशा कहते थे कि “अल्लाह मालिक है” वो यह भी बोल सकते थे कि सबका मालिक भगवान् है या सबका मालिक राम है या सबका मालिक कृष्ण है। आप इस बात की जांच के लिए साईं सच्चरित्र 4,5 और 7 पढ़ सकते हैं।
साईं बाबा लोगों से कहते थे कि पूजा, पाठ और योग करने की कोई जरूरत नहीं है और वे
मस्जिद से बर्तन मंगवा कर फातिहा पड़ने को कहते थे इसके बाद ही भोजन करते थे। कभी उन्होंने ये क्यों नहीं कहा कि भोजन का श्री गणेश करो।
बहुत से लोग कहते हैं कि साईं बाबा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे तो उनकी जानकारी के लिए ये समझ लीजिए कि कोई ब्राह्मण मस्जिद में रहना क्यों पसंद करेगा और ना ही कोई ब्राह्मण सर पर कफ़न जैसा कोई कपड़ा बंधेगा।
साईं बाबा के समय में एक बार प्लेग फैला तो उन्होंने गांव के लोगो को गांव से बाहर जाने से मना कर दिया जिससे हुआ ये को प्लेग बाहर से गांव में नहीं आ पाया और लोगों ने ये प्रचारित कर दिया कि उन्होंने प्लेग को खत्म कर दिया और इसे भोले भाले लोग चमत्कार मानने लगे।
शायद आपको ये नहीं पता होगा की साईं बाबा का असली नाम चांद मियां था। ज्यादातर लोग साईं को यवन का मुस्लिम मानते थे।
आज तक मैंने जितने भी साईं मंदिर देखे है उन सभी में साईं की मूर्तियां बहुत ही सुन्दर और मनमोहक होती है, असल में एक पूरी योजना के साथ झूठ का प्रचार करके साईं को मंदिरों में बिठाने का षड्यंत्र 1992 में श्री रामजन्मभूमि के बाद शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य था राम के नाम पर उग्र हो चुके हिन्दुओ के जोश को ठंडा करके एक ऐसा विकल्प देना जिसके पीछे भाग कर हिन्दू राम को भूल जाए, आज जितने देश में राम मंदिर है उतने ही साईं के मस्जिद रूपी मंदिर बन चुके है, हर राम मंदिर में राम जी के साथ साईं नाम का अधर्म बैठा हुआ है,
- अधिकतर साईं के मंदिर 1980 के बाद ही बने है तब इस्लामिक संगठनो द्वारा साईं के प्रचार के लिए बहुत अधिक धन लगाया गया,
- साईं बाबा ने खुद को पास वाले मंदिर में इस्लामिक रीती रिवाज से पूजने की बात कही थी, जिसके बाद मंदिर में ही गड्ढा खोद कर उन्हें वहां दफना दिया गया था, कई लोग ये मानते हैं कि साईं बाबा ने उनके जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन लाए या उनके कारण उनके जीवन की अभिलाषा या इच्छा पूरी हो गई और हम इसे किसी बाबा का चमत्कार मान लेते है।
- किसी भी इंसान को ईश्वर का दर्जा ना दे और अगर उसके कर्म अच्छे है तो उसे आप एक सज्जन या संत पुरुष मान सकते हैं उसका सम्मान करिए
साईं बाबा हिन्दू थे या मुसलमान?
क्या वे कबीर, नामदेव, पांडुरंग आदि के अवतार थे। कुछ लोग कहते हैं कि वे शिव के अंश हैं और कुछ को उनमें दत्तात्रेय का अंश नजर आता है। अन्य लोग कहते हैं कि वे अक्कलकोट महाराज के अंश हैं। इसके विपरीत अब लोग मानने लगे हैं कि वे यवन देश के एक मुस्लिम फकीर थे। क्या सचमुच ऐसा था? जरूर है कि हम अपने संतों पर सवाल उठाएं, जो सोना होगा वह आग में तपकर और कुंदन हो जाएगा।
यदि हम आचार्य चतुरसेन का उपन्यास ‘सोमनाथ’ पढ़ें तो पता चलता है कि मुगल और अंग्रेजों के शासनकाल में ऐसा अक्सर होता था कि जासूसी या हिन्दू क्षेत्र की रैकी करने के लिए सूफी संतों के भेष में फकीरों की टोली को भेजा जाता था, जो गांव या शहर के बाहर डेरा डाल देती थी। इनका काम था सीमा पर डेरा डाल कर वहां के लोगों और राजाओं की ताकत का अंदाजा लगाना और प्रजा में विद्रोह भड़काना।
अक्सर सूफी संतों की मजार आपको शहर या गांव की सीमा पर मिलेगी, क्योंकि सीमा पर से टोह लेने में आसानी भी होती और खतरा भी नहीं रहता था। चूंकि हिन्दुओं के मन में प्राचीनकाल से संतों के प्रति श्रद्धा और विश्वास सिखाया गया है, तो वे किसी भी संत पर सवाल नहीं उठाते और उसे संदेह की दृष्टि से नहीं देखते थे। खासकर गांव की भोली-भाली जनता तो संतों की तरह कपड़े पहने लोगों पर सहज ही विश्वास कर उसके चरणों में झुक जाती है। ये कथित संत आजीवन यहीं रहकर एक तरह जासूसी का कार्य करते तो दूसरी ओर धर्म का काम।
साईं के विरोधी और कट्टर हिन्दुओं का तर्क है कि ऐसे कई सूफी संत हुए हैं जिन्होंने राम-कृष्ण की भक्ति के माध्यम से हिन्दुओं को धीरे-धीरे इस्लाम के प्रति श्रद्धावान बनाया और अंतत: उन्हें इस्लाम की ओर मोड़ दिया। आज भी ऐसे कई संत सक्रिय हैं। साईं बाबा भी इसी साजिश का एक हिस्सा है। कोई हिन्दू संत सिर पर कफन जैसा नहीं बांधता, ऐसा सिर्फ मुस्लिम फकीर ही बांधते हैं। जो पहनावा साईं का था, वह एक मुस्लिम फकीर का ही हो सकता है। हिन्दू धर्म में सिर पर सफेद कफन जैसा बांधना वर्जित है या तो जटा रखी जाती है या किसी भी प्रकार से सिर पर बाल नहीं होते।