Blood Behind your favorite Briyani

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इंसानों का शौक लेकिन उसकी कीमत चुका रहे है जानवर, दुनिया में बढ़ती हुई नॉनवेज की दीवानगी क्या सच में जरुरी है ? पूरी दुनिया में हर साल कितने जानवर बन रहे है हम इंसानों का भोजन ? कैसे जीते है वो जानवर अपना जीवन ? क्या ऐसा करना इंसानों के लिए सही है चलिए चर्चा करते है इन बातों पर।  

आज हमारी दुनिया काफी ज्यादा बदल चुकी है पर अगर नहीं बदला है तो खाने का शौक, और ये तो शायद दिन बा दिन बढ़ता ही जा रहा है, भई बढे भी क्यों ना ? दिन बा दिन मार्किट में एक से एक बेहतरीन जायकेदार, मसालेदार , चटपटी और अपने स्वाद में डुबा देने वाली डिशेज जो आती जा रही है, भई खान पान के मामले में तो आज पूरी दुनिया ही खूब आगे चल रही है, जहाँ हर देश हर शहर में एक अलग और ख़ास डिश का बोलबाला है और बात हो हमारे भारत की तो जनाब भारत भी खान पान के मामले में किसी से कम नहीं है फिर चाहे बात वेज खाने की हो या नॉनवेज खाने की।              

बात अगर नॉनवेज की  की जाए तो आज के समय में नॉनवेज के दीवानों की भी कमी नहीं है, आज नॉनवेज फ़ूड तो लोगों की जुबान पर लगा हुआ है, इतना की लोग वेज फूड को तो भूल ही चुके है जो सेहत से लेकर हर चीज के लिए सबसे अच्छा है पर नहीं आज के लोगों को तो भई टेस्ट चाहिए वो भी नॉनवेज का, नॉन वेज में तमाम तरह की डिश दुनिया भर में मौजूद है और भारत के नॉनवेज लवर्स के दिमाग में तो केवल एक ही भूत सवार है और वो बिरयानी का।      

भई पार्टी शार्टी करनी हो या फिर कोई बड़ा एन्जॉयमेंट, शादी ब्याह की बात हो या फिर कोई छोटा बड़ा ईवेंट अगर नॉनवेज नहीं है तो आधे से ज्यादा मेहमानों के तो मुँह ही बन जाते है, अब अगर नॉनवेज लवर्स से पूछा जाए कि भई नॉनवेज में कितने प्रकार की डिशेज़ होती है तो बेशक वो आपको एक बड़ी लिस्ट बना के दे देगा, बिरयानी, कोरमा, चंगेजी, चिकन टिक्का , कबाब और ना जाने क्या क्या लेकिन अगर आप ऐसे नॉनवेज लवर्स से सवाल करो कि क्या आप जानते है कि आपकी जो नॉनवेज फ़ूड के साथ दिल्लगी है वो बेज़ुबान जानवरों को कितनी भारी पड़ती है ? तो शायद नॉनवेज लवर्स के पास इसका कोई जवाब नहीं होगा।  

अब हो भी कैसे बरसों से एक कहावत जो चली आ रही है कि “आम खाओ घुटलियों पर ध्यान मत दो” बोले तो बिरयानी , कोरमा, टिक्का और कबाब खूब लपेटो लेकिन इसमे छिपे उन बेजुबान जानवरों की चीखें, उनके दर्द , उनकी कराहना पर ध्यान मत दो , बिलकुल इसी सोच के साथ दुनिया भर में लोग जानवरों को खाना अपना शौक बना रहे है।

ये बात एक या दो देश की नहीं है बल्कि बहुत से ऐसे देश है जहाँ हद से ज्यादा नॉनवेज फ़ूड को अपनी डाइट में यूज़ किया जाता है, यहाँ बात करे चाइना की तो यहाँ सबसे ज्यादा नॉनवेज फ़ूड का सेवन किया जाता है, चाइना के लोग मासाहारी भोजन को बड़े ही चाव से खाते है, यहाँ के लोग खासतौर पर मछली, मुर्गा , गौमांस और मटन खाते है और यहाँ का नॉनवेज फ़ूड पूरी दुनिया में ही अपनी लज़ीजगी के लिए मशहूर है, वहीँ USA में भी नॉनवेज लवर्स की कोई कमी नहीं है, यहाँ का नॉनवेज फूड बेहद पॉपुलर है, यहाँ लोग बीफ, चिकन, पोर्क और सी फ़ूड का खूब मजे से सेवन करते है और ये तो कुछ नहीं स्टेक, बर्गर, हॉट डॉग और फ्राइड चिकन जैसी चीजों को तो अमेरिका के खाने की पहचान का हिस्सा माना जाता है। 

वहीँ ब्राज़ील में तो गौमांस खाना बहुत ही ज्यादा पॉपुलर है, ब्राज़ील में ज्यादातर लोग गाय, भैंस , मुर्गा और मछली जैसे जानवरों को अपना खाना बनाना पसंद करते है और इसी तरह रूस भी में भी लोग मछली गौमांस को ज्यादातर अपना खाना बनाना पसंद करते है, कुल मिलकर ये एक या दो देश की बात नहीं है बेज़ुबान जानवरों को अपनी डाइट बनाना आज बहुत से देशों में पॉपुलर हो चुका है।      

पर आज जिस तरह दुनिया भर के अलग अलग देश नॉनवेज खाने को अपने खाद्य पहचान का हिस्सा बना रहे है, लोग नॉनवेज को अपना शौक बना रहे है लेकिन शायद उनके मन में कभी ये ख़याल नहीं आया की उनके इस स्वाद की कीमत जानवर चुका रहे है, आपको जानकार हैरानी होगी की हर साल इंसान एक या दो करोड़ नहीं बल्कि कई अरब जानवर मारकर उनको अपना भोजन बनाते है, जी हाँ कुछ समय पहले  World Animal Foundation की एक रिपोर्ट के अनुसार बताया गया था कि इस पूरी धरती पर हर साल 13.1 बिलियन लगभग 13 सौ करोड़ से भी ज्यादा जानवर मरते है और इसमें सबसे बड़ी बात ये है कि ये सभी जीव इंसानों का खाना बनने के लिए ही मारे जाते है, वहीँ अगर बात पूरी दुनिया में मरने वाले जीवों की करें तो ये आकड़ा इससे भी कई ज्यादा है जो करीबन 83 बिलियन है यानी लगभग 8300 करोड़। 

जी हाँ ये अकड़ा चौकाने वाला जरूर है लेकिन ये दुनिया का सच है, आपको बता दें रिपोर्ट के अनुसार अकेले अमेरिका में ही हर साल शिकारियों के द्वारा 100 मिलियन यानी लगभग 10 करोड़ जानवर मार दिए जाते है।    

वैसे नॉनवेज में तीन ऐसे जानवर है जिन्हे सबसे ज्यादा अपनी भूख मिटाने के लिए यूज़ किया जाता है और वो है मुर्गियां, मछलियां और बकरियां, तो चलिए इनके आकड़ों से भी हम आपको रुबरुर करा देते है।  

वर्ल्ड एनिमल फाउंडेशन कि एक रिपोर्ट के अनुसार बताया गया था कि हर साल पूरी दुनिया में मुर्गियों और बकरियों के मारे जाने की संख्या करीब 73 करोड़ कि है, वहीँ अगर बकरियों की संख्या की बात करें तो ये अकड़ा 500 मिलियन तक पहुँचता है या उससे ज्यादा भी यानी लगभग 50 करोड़, वही अगर बात करे फिश काउंट की तो एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में 50 बिलियन से 167 बिलियन की संख्या तक मछलियों को खाने के लिए मारा गया था, हालांकि ये रिपोर्ट केवल उन्ही मछलियों की थी जो पाली हुई थी यानी समुन्द्र और नदियों से मारी जाने वाली मछलियों का आकड़ा इसमें शामिल नहीं था।

इससे आप समझ ही सकते है कि दुनिया भर में हर साल करोड़ों जानवरों को अपनी भूख मिटाने का साधन बनाकर मारा जाता है, वो बेज़ुबान जानवर जो अपने दर्द को किसी भी तरह बयान ही नहीं कर सकते, वो बेज़ुबान जानवर जिनके शरीर से रक्त का कतरा कतरा अलग करके उन्हें अपनी शानो शौकत का आधार बना दिया गया है, वो बेज़ुबान जानवर जिनकी गर्दन धड़ से अलग करते समय मारने वालों को ज़रा भी तरस नहीं आता, क्या कभी उनके ज़हन में ये ख्याल आया है कि जिसे वो अपने शौक के लिए मार रहे है उसने कभी कोई नुक्सान पहुंचाया, शायद नहीं लेकिन फिर भी अपने शौक के लिए मस्ती, टेस्टी बिरयानी और कोरमा जैसे खाने l के लिए लोग उन्हें मार देते है।     

खैर ये दर्द, पीड़ा केवल मारने के समय पर ही नहीं होती है बल्कि ये बेजुबान जानवर जो भोजन के लिए यूज़ किये जाते है इनका जीवन तो पहले ही नर्क से बत्तर बना दिया जाता है, जहाँ वो बस भय और पीड़ा सहते है, जी हाँ आज आप जिस चिकन बिरयानी लपेटने के बाद मस्त घूमना फिरना करते होंगे क्योकि कोई रोका टोकि ही नहीं है लेकिन आपको बता दें इन जानवरों को तो हमेशा ही ऐसी जगहों पर रखा जाट है जहाँ वो घूम फिरना तो दूर की बात है ठीक से लेट भी नहीं सकते, यहां तक की जो मुर्गियां अंडे देती है ना उन्हें भी छोटे से पिंजरों में रखा जाता है।        

वाक़ई देखा जाए तो इंसान आज के समय में जरा भी भावनाओं वाला नहीं रहा है, बल्कि इंसान तो उनसे पैसे कमाने की लिए genetic तौर पर गोलमाल करने लगे है, जहाँ वो जानवरों को बड़े होने या naturally ज्यादा दूध या अंडे देने के लिए अलग अलग चीजों का यूज़ करने लगे है, जिसके चलते कुछ मुर्गियां तो इतनी बड़ी हो जाती है की वो अपने शरीर का वजन अपने पैरों से ही नहीं संभाल पाती और जब वो खाने पीने के लिए चल फिर नहीं पाती तो वो dehydration से पीड़ित हो जाती है।         

निर्दयता इतनी की वाक़ई कुछ कहा नहीं जा सकता, अपनी ख़ुशी, अपने शौक और अपने मन को तसल्ली देने के लिए अपने पेट को भरने के लिये जो किसी वेज फ़ूड से भी भर सकता है लेकिन बावजूद इसके बेजुबान जानवरों के छोटे छोटे बच्चों को उनकी प्यारी माताओं से दूर कर दिया जाता है, जहाँ वो माताएं अपने बच्चों को पोषण देना चाहती है वही बच्चा Human Consumption के लिए भेज दिया जाता है।    

इतना ही नहीं अगर हम इंसानों के जरा सी भी चोट लग जाए तो भाईसाहब दवाइयों की लाइन लग जाती है, पेन किलर्स लो अलग अलग तरह की दवाइयां लो जिससे दर्द को कम किया जा सके लेकिन जानवरों के लिए ऐसा कुछ नहीं होता, जानवरों को क्रूरता का सामना करना पड़ता है जहाँ उन्हें बिना दर्द निवारक दवाओं के दिए ही उनकी चोंच निकाल दी जाती है, सींग निकाल दिया जाता है, और उनका शरीर तोड़ मरोड़ दिया जाता है इस तरह से इंसानों की क्रूरता का सामना करते है ये जानवर।   

पर नहीं इससे शायद आज के इंसानों को कोई फर्क ही नहीं पढता, खाने वाले को खाने से मतलब है और बेचने वाले को बेचने से जहाँ खाने वाले को बेजुबान जानवर की जान लेकर उसे खाने में मजा आता है वहीँ बेचने वाले को, बेजुबान जानवर को काटकर मारकर उससे कमाए हुए पैसों को देखकर मज़ा आता है, यानी आज हर कोई अपनी कमी को, अपने शौक को , अपनी इच्छा को पूरा करना चाहता है फिर चाहे उसकी कीमत बेजुबान जानवर को अपनी जान देकर ही क्यों ना चुकानी पड़ जाए।      

क्या वाक़ई हम इंसान इतने ज्यादा निर्दयी हो गए है कि चटपटी, लज़ीज बिरयानी के अंदर छिपे उस बेजुबान जानवर के खून, उसके दर्द, उसकी पीड़ा को समझ नहीं पा रहे है, क्या हमारा नॉनवेज खाना इतना ही जरुरी है क्या हम उसके बिना जी ही नहीं पाएंगे, क्या हमारा बिरयानी कोरमा खाना इतना जरुरी है कि एक बच्चे को उसकी माँ से सिर्फ अपने स्वाद के लिए अलग कर दें ? शायद इन सबका जवाब नहीं है, क्योकि वेज फ़ूड भी स्वाद में किसी से कम नहीं होता लेकिन बस ज़रा सोचने की बात है।

आज दुनिया में करोड़ों जानवर मर रहे है कल इनकी संख्या इससे भी ज्यादा की होगी पर अगर हम इंसान इनको खाने की बजाय इन्हे पालने और इनके जीवन को सही, अच्छा बनाने की कोशिश करें तो शायद इससे हमे वो ख़ुशी मिलेगी जो इन्हे हजारों बार खाकर भी नहीं मिली होगी।

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